पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/७१

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मालवा - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - -- - - - याकोव ने दूर से चिल्लाते हुए कहा : " तुम्हें अपने ऊपर शर्म आनी चाहिए । तुम्हारे बाल मफेद हो चुके हैं और फिर भी तुम एक औरत के पीछे इस तरह पागल हो उठे हो । उह , __ तुम | परन्तु मैं गाँव वापिस नहीं जा रहा हूँ तुम चले जानी । तुम्ना । । यहाँ कोई काम नहीं है । " याश्का ! चुप रहो " याकोव की आवाज को ढुवाते हुए वासिजी गरजा । “ याश्का ! मैं तुम्हें मार डालू गा । यहाँ से भाग जाये " याकोव धीरे धीरे कदम रखता हुधा चल दिया । उसका बाप सूनी और पागल सी आँखों से उसे देखता रहा । वह छोटा दिखाई दे रहा था । उसके पैर जैसे वालू में गढ़ गए थे वह कमर तक घुस गया • कन्धे सक , गर्दन तक । वह चला गया था । एक क्षण बाद, उस जगह से कुछ दूर, जहाँ वह गायब हुघा था , उसका सिर दिखाई दिया , फिर उसके कन्धे और फिर उसका पूरा शरीर . .. लेकिन अब वह और भी छोटा लग रहा था । वह मुड़ा, वासिली की तरफ देखा और कुछ चिल्लाया । ___ तेरा बुरा हो । तेरा बुरा हो । तेरा बुरा हो । ” वासिली जवाब में चीखा । बेटे ने घृणा प्रकट की , मुदा और चल दिया • फिर रेत के टीलों के पीछे गायब हो गया । वासिली बहुत देर तक उधर देखता रहा जिधर उसका बेटा गया था । वह वन तक देखता रहा जब तक कि उसकी गर्दन में दर्द न होने लगा क्योंकि वह नाव के सहारे उठग कर बड़ी कष्टपूर्ण मुद्रा में लेटा हुआ था । वह उठा पर हरेक जोड़ में होने वाले दर्द से लड़खड़ा गया । उसको पेटी काख तक सिसक पाई थी । उसने अपनी सुन्न पड़ी हुई उँगलियों से उसे सोला, अपनी घाखों के पास लाया और फिर रेत पर फेंक दिया । फिर वह मोपड़ी में गया और चूल में बने हुए एक गढ़े के सामने रुक गया । उसे याद पाया कि यही वह जगह है जहाँ वह लदखड़ा कर गिर पड़ा था और