पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/६०

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मालवा "तुम जानते हो ? ..कभी मैं चोचनी हूँ कि इन झोपड़ियों में से एक में भाग लगा दूं तो कैसा मजा रहेगा । कैमो उचल पथल मच ___ जायेगी।" 4 "मुझे भी यही कहना चाहिये " सोझका ने प्रशसा करते हुए __ कहा और अचानक मालवा के कन्धे पर हाथ मारता हुया बोलाः "तुम जानती हो ? मैं तुम्हें एक मजेदार खेल सिसाऊंगा और इसे हम लोग ग्वेलेंगे। तुम पसन्द करोगी?" "जरूर ! खुशो से"मालवा ने उग्सुकता से व्याकुल होकर कहा । "तुमने याश्का के दिल में आग लगा दी है न ?" "वह एक भट्टो की तरह जल रहा है," मालवा ने मुह ही मुंह में हमते हुए जवाव दिया। "उसे अपने बाप से भिड़ा दो ! ईश्वर कमम बढ़ा मजा रहेगा!... वे दोनों एक दूसरे पर रीलों की तरह मरट पटेंगे .... ...तुम उस बुड्ढे का योड़ा सा और परेशान करो और उस छोकरे को भी.......और तब हम उन दोनों को श्रापस में भिड़ा देंगे । तुम्हारा क्या ख्याल है, क्यों ?" माजवा मुढ़ी और सर्योमका के लाल, मस्त चेहरे की पोर गीर से देसने लगी । चाँदनी में चमकता हा वह उसमे कम चित्तीदार दिखाई दे रहा था जितना कि दिन में सूरज की चमकीली रोशनी में दिपाई देता पा। उस पर क्रोध का कोई चिन्ह नहीं था। उस पर सिर्फ एक सुन्दर और कुछ शैतानियत से भरी हुई मुस्कान छा रही थी। _ "तुम उन्हें इतनी घृणा क्यों करते हो ?" मालवा ने गंकित होकर ___उससे पूटा। __ "म? .. ..मोह, वासिली तो ठीक है । वह अच्छा शादमी है । मगर यारका......वह अच्छा नहीं है। देखो, मैं सब किसानों को नापसन्द करता हूँ ......वे सब गन्दे होते है ! वे यह दिलाने की कोशिश करते है कि यै गरीव और प्रभागे हैं......और रोटी या जो कुछ भी उन्हें दे दिया जाय लेते हैं। उनका मस्चो है। तुम जानती हो, जेमस्वो उनके सब जाम कर देता है ..उनके अपने सेत है, अपनी जमीन, अपने जानवर