पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/५४

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मालवा गे. "मैं क्यों पू₹ ?" वासिली ने लापरवाही से कहा परन्तु वह वि कुछ सुने ही काँप उठा। "वह पिछले इतवार को यहाँ नहीं थी, थी क्या ? तुम उसकी वजा से जलते हो, जलते हो न ? मूर्ख बुड्ढे !" । "उसकी जैसी बहुत सी है !" नफरत से अपना हाथ हिलाते हु॥ चासिली ने कहा। ___ "उसकी जैसी बहुत सी !" सर्योमका घुर्राया, "उँह तुम गवार श्रादमी ठहरे, शहट और कोलतार मे अन्तर नहीं जानते !" "तुम उसे इतना ऊंचा उठाने की कोशिश क्यों कर रहे हो ? क्या यहाँ शादी कराने वाले दलाल बन कर याये हो ? तुमने बहुत देर करदी ! यह मौका तो बहुत दिनों पहले भाया था !" यामिली ने ताना मारा ! सोमका कुछ देर तक उसकी तरफ देखता रहा और फिर उसके कन्धे पर अपना हाथ रखते हुए गहराई से बोलाः "मैं जानता है कि वह तुम्हारे साथ रह रही है। मैंने रकावट नहीं डाली इमको कोई जरूरत भी नहीं थी..... लेकिन अब याश्का-तुम्हारा वह येटा उसके चारों थोर मंडराता फिरता है । उसे एक अच्छा सा मयक दे दो! सुन रहे हो मैं क्या कह रहा है ' धगर तुम नहीं सवक दोगे तो मैं दंगा... तुम भले यादमी हो...सिर्फ तुम लक्ड़ो की तरह ठम्म हो ..मैने नुम्हारे बोत्र में बाधा नहीं डाली थी.... मैं तुम्हें उपकी याद दिला देना चाहता हूं।" "अच्छा तो यह मामला चल रहा है ! तुम भी तो उसके पोरे पड़े Jहो, क्यों ?" वामिली गहरी अावाज में बोला। मैं भी .. एगर मैं चाहता होता तो सीधा उसके पास पहुंचता और तुम सन को अपने रास्ते में उराठ कर दूर फेंक देता!..... लेकिन मैं उसे क्या नुव दे सकता है।" "नो तुम क्यों इसमें अपनी नाक घुसेड रहे हो ? बासिली ने म करने हुए कहा।