पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/५

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मालवा गों और सरकइधर-उधर छितराए पाती यो। नाव के उसकी पतली चोटियों चमकते हुए जल के समीप विस्तार से कट गई थीं। अधोभाग उस सुदूरवर्ती घुन्ध में सो गया था जो मुख्य भूमि भाग को छिपाए हुए थी । जहाँ से हवा के द्वारा लाई हुई दूसरी वरह की एक ऐसी गन्ध आ रही थी जो यहाँ निर्मल समुद्र के ऊपर और आकाश के चमकीले नीले गुम्बज के नीचे, अजीब सी और दुखदायी प्रतीत हो रही थी। तट पर, जहाँ मछली तौलने के कोटे छितरे पड़े थे, एक मछली पकड़ने वाला जान जमीन पर गढ़े हुए लट्ठों पर टॅगा हुआ था और जमीन पर मकड़ी के जाल जैसी छायायें ढाल रहा था । ____एक छोटी और बहुत सी बड़ी नावे एक कतार में पड़ी हुई थीं। लहरें किनारे की ओर दौड़ती हुई जैसे उनसे कुछ कह जाती थीं। नाव के काटे, पतवार, टोकनियों और पीपे इधर-उधर छितराए पड़े थे और उनके वीच में पेड़ की टहनियों और सरकन्डों से बनी हुई एक झोंपड़ी खड़ी थी, जो बड़ी-बड़ी चटाइयों द्वारा छाई गई थी । दरवाजे पर, दो गाँठदार टेढ़ी लकड़ियों पर उपर की ओर सले किए हुई, नमदे के जूतों का एक जोड़ा लटक रहा था। इस प्रस्तन्यस्तता के ऊपर एक लम्बा लट्ठा खड़ा हुआ था जिसके ऊपरी सिरे पर वधा बाल कपड़ा हवा में फड़फड़ा रहा था। एक नाव की छाया में, सट का चौकीदार वासिनी लेगोस्टयेव लेटा हुया था । यह स्थान में वेनस्चिकोष नामक मछली पकड़ने के स्थान को बाहरी चौकी पर स्थित था । वासिली पेट के बल लेटा हुआ हथेलियों पर अपनी ठोड़ी नमाए दूर समुद्र में जमीन की धुंधली सी दिग्वाई देने वाली पट्टी की भोर देख रहा था । उसको निगाहें पानी पर एक छोटी सी काली चीज पर जमी हुई थीं। और उसे यह देखकर अपार प्रसन्नता हुई कि वह वस्तु जैसे २ नजदीक पाती जा रही है उसका श्राकार बढ़ता जा रहा है। उसने समुद्र में चमकती हुई सूरज की किरणों से अपने को बचाने के। लिये हायों की छाया करते हुए आँखों को सिकोड़ कर देखा और सन्तोप से मुस्करा उठा-मालया था रहो यो । वह श्रायेगी और हंसेगी जिससे उसकी छातियों, मधुर लुभाने वाले श्राकर्षक ढग से हिलने लगेंगी। वह उसे अपनी