पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/४७

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५ मालया


"दा" नाव घुमाने वाले पहिए पर खड़े हुए आदमी ने श्राज्ञा दी। पतवार उठे और नाव की दोनों तरफ एक दैत्याकार कछुए के पंजों की तरह चलने लगे । “एक ? दो ! • एक ! "दो! "" पाँच प्रादमी किनारे पर जाल के सूखे भाग पर रह गए सर्योमका वासिली तथा तीन और । उनमें से एक बालू पर नीचे बैठते हुए बोला : "मैं थोड़ा और सोऊंगा।" दो और मछुओं ने उसका अनुकरण किया और तीन शरीर चिथड़ों में लिपटे हुए बालू पर लेट गये । "तुम इतवार को क्यों नहीं पाये थे ?" झापड़ो की ओर चलते हुए वासिली ने सोझका से पूछा । "मैं श्रा नहीं सका।" "क्यों, क्या शराब पी ली थी ?" "नहीं । मैं तुम्हारे बेटे की निगरानी कर रहा था और साथ ही उसकी सौतेली माँ को भी।" सर्योझका बोला। "तुमने अपने लिए बड़ा अच्छा काम ढूंढ़ लिया है ?" वासिली ने सूखी मुस्कान से कहा-"क्यों । क्या वे बच्चे हैं ?" "बच्चों से भी बुरे" एक मूर्ख है और दूसरा "एक सन्त " "क्या । मालवा और एक सन्त ? आँखों से क्रोध की ज्वाला फेंकते हुए वासिली ने पूछा-"क्या वह बहुत दिनों से ऐसी है ?" "उसकी श्रामा उसके शरीर के योग्य नहीं, भाई ।" "उसकी श्रा मा वड़ी मकार और दुष्ट है।" सर्योझका ने कनखियों से वापिलो की ओर देखा और घृणा-पूर्वक नाक के स्वर में बोला ___"मकार । उह । तुम काहिल मूर्ख टिड्डे | तुम कुछ नहीं समझते "तुम तो औरत में सिर्फ यही चाहते हो कि वह एक मोटी चिड़िया की तरह हो । तुम उसके चाल-चलन की कोई फिकर नहीं करते लेकिन औरत का सबसे बड़ा मजा तो उसके चरित्र मे है " " "विना चरित्र के तो