पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/४

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पालवा समुद्र हँस रहा था। हल्की गर्म हवा के झोंकों से रह-रह कर काँप उठता और छोटी-छोटी नहरों से भर जाता जिन पर सुरज की किरणें चकाचौंध उत्पन्न कर देने वाली चमक से प्रतिविम्बित हो रही थीं। वह अपनी हजारों रुपहली मुस्कानों से जे आकाश को देख कर मुस्करा रहा था। समुद्र और थाकाश के बीच केला हुमा व्यवधान समुद्र की उठती हुई लहरों के मधुर संगीत से भर उठता था, जब वे लहरें एक दूसरे के पीछे भागती हुई तट पर खड़े हुए हाद के ढलुवाँ भाग की ओर चनी जातीं। छीटे उछालती हुई लहरें और पूरन की चमक सहस्रों छोटी छोटी लहरियों में प्रतिबिम्बित होकर नेरन्तर होने वाली शान्त-गति में डूब जाती-उल्लास और प्रसन्नता से भरी ई। सूर्य प्रसन्न या क्योंकि वह चमक रहा था और समुद्र भी-क्योंकि वह सूर्य की उल्लास से परिपूर्ण चमक को प्रतिविम्बित कर रहा था। हवा प्यार से समुद्र की मखमली छाती को थपथपा रही थी, सूरज प्रपनी जलती हुई किरणों से उसे गर्मी पहुंचा रहा था और समुद्र उस स्नेहपूर्ण दुलार में पड़ा हुआ निद्रा-मग्न होकर गहरी साँस लेता गर्म हवा में एक रलौनी सुगन्धि भर रहा था। हरी लहरें पीले किनारे पर टकरा कर टूट नवीं और उसे सफेद भागों से भर देती जो गर्म बालू पर हल्की साँस लेता मा पिघलता रहता और उसे सदैव गीला रखता। यह लम्बा, संकरा, ढलुवा पहाड़ का किनारा एक विशान ऊँची नार की तरह दिखाई दे रहा था जो फिनारे से समुद्र में गिर पड़ी हो।