पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/३५

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तुम्हें पछताना पड़ेगा,"-मालवा ने प्राधे मनाक और आधी गम्भीरता से कहा।

"तुम मुझे हमेशा डराती क्यों रहती हो ?" याकोव घबड़ाकर मुस्कराते हुए बोला । "मेरी बात पर ध्यान दो। जैसे ही तुम्हारे बाप के कानों में इसकी) खबर पहुँची.........." दुवारा अपने बाप का नाम सुनकर याकोव गुस्से से भर उठा। "मेरे वाप की क्या बात है ?" उसने गुस्से से पूछा-"मान लो वह सुन लेता है ? मैं बच्चा तो हूँ नहीं " वह समझता है कि वह मालिक है परन्तु वह यहां मेरे ऊपर हुकूमत नहीं कर सकता हम लोग घर पर नहीं हैं • मेरी आँखें नहीं फूट गई हैं। मुझे मालूम है कि वह भी साधू नहीं है । वह यहां जो चाहता है सो करता है। उसे मेरे बीच में दखल देने का कोई अधिकार नहीं हैं।" - मानवा ने मजाक उड़ाती हुई निगाह से उसके चेहरे की ओर देखा और जिज्ञासा के स्वर में पूछने लगी। "तुम्हारे बीच में दखल न दे ! क्यों, तुम क्या करना चाहते हो?" "मैं !" गाल फुलाकर, सीना बान कर जैसे कोई भारी बोझ उठा रहा हो, याकोव बोला-"मैं क्या करना चाहता हूँ ? मैं बहुत कुछ कर सकता हूँ । यहाँ की साजी हवा ने मेरा सारा गंवारपन दूर कर दिया "जल्दी का काम शैतान का होता है !" मालवा ने ग्यंग करते हुए कहा। "मैं तुम्हें बता सकता हूँ कि क्या? मैं शर्त लगावा हूँ मैं उन्हें अपने बाप से जीत लूंगा।" "अच्छा ! सचमुच " "क्या तुम सोचती हो कि मैं डरता हूँ।" "न-हीं।" "इधर देखो।" याकोब वे समझे सत्तेजित होकर बोला-"मुझे परेशान मत करो · नहीं तो "मैं .."