दो नन्हें बच्चों की कहानी २४६ और यही कारण है कि मैं यह अच्छा समझता हूँ कि एक ऐसी कहानी कहूँ जिसमें एक गरीब लड़का या लड़की ठन्ड से ठिठुर कर नहीं मरे । यह वढे दिन की शाम को छः वजे की घटना है । हवा वरफ के बादल माती हुई तेजी से बह रही थी । पारदर्शक ठन्डे बादल , धुनी हुई रुई के समान हल्के और सुन्दर, चारों तरफ उड़ते फिर रहे थे । वे राहगीरों के गानों से टकरा कर उनमें सुइयाँ सी धुभा देते और घोड़ों के अयानों पर बरफ दिढक जाते । घोड़े अपने सिर हिलाते और नथुनों में से भाप के बादल छोदते हुए जोर से हिनहिना उठते । पाले से ढके हुए तार सफेद एंठी हुई रस्सी से लगते । श्रासमान साफ और तारों से भरा था । तारे इतने साफ चमक रहे थे कि लगता था मानो किसी ने इस अवसर के निमित्त उन्हें पालिश से रगर कर चमका दिया हो , जो नितान्त असम्भव था । सड़कें भी और शोरोगुल से मर रही थीं । घोडे सड़क पर दौड़ रहे थे । लोगयाग फुटपायों पर चल रहे थे, कुछ तेजी से तया कृर श्राराम के साय धीरे धीरे । तेज चलने वाले इमलिए तेज चल रहे थे कि उन पर जिम्मे दारियाँ थीं । और वे गरम कोट नहीं पहने थे; धीरे धीरे चलने वाले इसलिए मटरगश्तो कर रहे थे कि उन्हें न कोई चिन्ता थी और न उन पर कोई जिम्मेदारियों दी थीं । ये लोग गरम कोट पहने थे भोर इनमें से कृद्ध तो फरदार कोट भी पहने थे । यह घटना उस व्यक्ति के माय घटी जिसे कोई चिन्ता नहीं थी मगर जो एक सुन्दर कालर वाला रुयेदार वोट पहने हुए या । यह घटना इस व्यपि के बिल्कुल पैरों के नीचे घटी जो दी शान के माय चला जा रहा था । हुशायद हि फटे चिपटों में लिपटी हुई दो गेंदें लुढ़की और उसी समय दी नन्ही परली सो शाबाजें सुनाई ५ों : " या महाशय . " एक नन्हीं लदकी को सुरीली प्रागन आई । " सरकार " " एक नन्द सर का पसला स्पर । " शाप हम गरीबों को एक टुका रोटी दे सकते है " रोटी के लिए एक पैसा । स्योहार के लिए , " उन्होंने एक माय म्बर
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