नमक का दलदल २३३ सुन कर काम छोड दिया था , उस समय हमारे पास पहुंचीं जब मजदूर अपने अपने ठेलों पर वापस पहुंच गए थे । मैं इस कटु भावना से उद्वेलित होता हुथा वहाँ श्रकेला रह गया कि मेरे साथ अन्याय हुश्रा था और मैं उसका Pा नहीं ले सका । इस भावना ने उस पीड़ा को और भी असह्य बना दिया । मैं अपने प्रश्न का उत्तर चाहता था ; मैं बदला लेना चाहता था । इस लिए मैंने चीखते हुए कहा : । " एक मिनट ठहरो , साथियो ! " वे लोग रुक गए और चुपचाप मेरी तरफ देखने लगे । "मुझे यह बतानो तुमने मेरे साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया । तुम्हारे भी तो श्रात्मा है ! " अब भी वे खामोश थे और यह खामोशी ही उनका जवाब यी । श्रव अधिक स्वस्थ और शान्त होकर मैंने उनसे बात करना शुरू कर दिया । मैने यह कहते हुए शुरु किया कि मैं भी उन्हीं की तरह एक श्रादमी हूँ कि उन्हीं की तरह मुझे भी पेट की भूख शान्त करनी पड़ती है इसलिए काम करना पड़ता है कि मैं यहाँ उन्हीं की तरह काम करने आया ६ था क्योंकि हम सब एक से भाग्य से बँधे हुए हैं कि मैं उन्हें नीची निगाह से नहीं देखता या अपने को उनसे ऊँचा नहीं समझता । " हम सब यराबर है , " मैंने कहा, " भौर हमें हर तरह से एक दूसरे को समझना और वापस में एक दूसरे को मदद करना चाहिए । " चे यहाँ खड़े हुए गौर से मेरी याते सुन रहे थे हालांकि मुझसे भौखें नहीं मिक्षा पा रहे थे । मैंने देखा कि मेरे शब्दों ने उन्हें प्रभावित किया है और इससे मुझे और भी टत्साह मिला । उन पर एक निगाह बने पर ही मुझे इस बात का विश्वास हो गया । मैं एक विचिन भोर तोसे मानन्द की भावना में भर उठा और नमक के एक टेर पर गिर कर रोने बगा । कौन नहीं रोता ? सब मने सिर टटाया तो मैं अकेजाया । काम का समय समाप्त हो तुका था । चौर नगर पाँच पाँच सौर ः हः की टोलियों में नमक के देर के पास बैठे हुए दयते सूरज की रोशनी से गुबायो यने नमक को पृष्टभूमि को रटे बरं काले गन्द धयों जैसे शरीरो में गन्दा बना रहे थे । पारों तरफ
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