१२६ नमक का दलदल मैंने , जितना भर सकता था , उतना भर लिया । उसी समय पीछे वाले मजदूर आगे वालों पर चोखेः " आगे बढ़ो ! " आगे वालों ने थूक से हाथ गीले किए और जोर से शोर मचाते हुए अपने ठेलों को उठाया । ऐसा करने में घे सुककर दोहरे हो गए और अपनी गर्दनों को आगे निकाले हुए उन्होंने पूरा जोर लगाया, मानो ऐसा करने से उनका वोमा हल्का हो गया हो । सनके तरीके की नकल करते हुए मैंने भी , अपनी शक्ति भर मुक कर आगे की तरफ जोर लगाया । मैंने ठेला उठा लिया । पहिया जोर से चर मराया । मुझे लगा कि मेरी गले की हड्डी टूट जायेगी । जोर पड़ने से मेरे वाह की मांस पेशिया फड़कने लगीं । मैंने लड़खड़ाते हुए पहला कदम उठाया , फिर दूसरा मुझे दाहिनो तरफ , बाई तरफ और कभी सामने की तरफ धक्के नग रहे थे . कि अचानक पहिया तख्ते से नीचे उतर गया और मैं मुंह के बल कीचड़ में जा गिरा । ठेले ने उपदेश सा करते हुए मेरे सिर पर अपने है दिल की चोट मारी और फिर धीरेसे उलट गया । और उन कान फाड़ने वाली सीटियों , चीख पुकारी और अट्टहास की उन ध्वनियों ने , जो मेरे गिरते ही , उठी थीं , मानो मुझे उस गर्म कीचड़ में और भी गहरा हुबो दिया । और जब में उस भारी ठेले को उठाने के व्यर्थ प्रयत्न में , हाय पर पीट रहा था तो मैंने अपने सीने में एक भयानक दर्द का अनुभव किया । " जरा मदद करो, दोस्त, " मैंने उस भीमकाय उक्रन निवासी से कहा बो मेरे पास खड़ा हुधा दोनों हार्यों से पेट पकड़े हमी के मारे धुरी सरह हिल रहा था । "कोचट पीने वाले हरामी । नहा रहे हो , क्यों ? इसे तर पर ऊपर उठायो । घांई तरफ से ओर लगायो । छ , । घगर तुमने ध्यान नहीं रखा तो यह कोचए तुम्हें निगल जायेगी । " और फिर वह अपना पेट पकड़े हुए तव सक हसता रहा जबतक कि रसके अांसु न निकल पाए । ____ मेरे सामने वाले भूरे बालों वाले पुढे ने मेरी तरफ देश और हाय के - इशारे से मुझे एक तरफ हटा दिया । सक
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