नमक का दवदन २२७ " अाखिर यह तख्तों पर क्यों नहीं चल सका ? " उसने कहा और गुस्से से बदबदाता हुथा अपना ठेला लिए आगे बढ़ गया । श्रागे वाले श्रादमी अपने रास्ते पर चलते रहे ; पीछे वाले मेरे ठेले को
- उठाने के प्रयत्नों को उपहास एवं क्रोध भरी दृष्टि से देखते रहे । मेरे शरीर पर
से पसोना और कोचढ़ को फुहारें मो छूट रही थी । किसी ने भी मेरी मदद नहीं की । नमक के ढेर पर से फोरमैन की भावान भाई : ___ " रुक क्यों गए, शैतानो ! कुत्तो ! सुअरो ! निगाह से प्रोमल होते ही मरामखोरी पर उतर आये । चलो, आगे बढ़ो, तुम पर खुदा का कहर टूटे ! " " रास्ता छोदो , " वह उननिवासी चीखा और अपने ठेले को बगनी से मेरे सिर को लगभग टकराते हुए आगे यह गया । अकेले रह जाने पर मैंने किसी तरह अपने ठेले को बाहर निकाल लिया और क्योंकि अब यह तालो और चारों तरफ कीचड़ से सना हुधा या, मैं उसे लेकर वहाँ से इस इरादे से भागा कि वदत कर दसरा ले या । फिसज गए दोस्त ? कोई बात नहीं; हरेक के साथ पहले पहन ऐसा ही होता है । " मैंने चारों तरफ नजर डाली और देखा कि एक पीस माल का छोकरा एक नमक के ढेर के पास कोचद में एक तपते पर पालयो मारे हुए बेटा है । यह अपने हाथ के अंगूठे को चूस रहा था । उसने मेरो तरफ इशारा किया और उमको उन प्रोखों में , जो उंगलियों में होकर देख रहो यो , दया और मुस्कान भरी हुई थीं । " मैं परवाह नहीं करता । गन्दी ही मोव जाऊंगा । तुम्हारे हाय को क्या हुमा ? " मैंने पूला । " जरा सो गरोच लग गई है मगर इसमें नमक लग रहा है । अगर हमे चूना न जाय तो शायद काम छोर पर माग जाना पदे । इस हाथ से फिर काम नहीं किया जा सकता । मगर पर फोरमैन गुम पर धीरे उसमें पाने की गुम काम पर लग नामो यो प्रश्ता होगा । " में पापर जा पाया । दूसरो सेर ला समय को घटना नहीं घटी ।