ममक का दलदल २२६ निर्मल श्राकाश में से सूर्य गर्मी की एक धुंधली सी चादर मानता इया तेजी से चमक रहा था । वह बढ़ते हुए उत्साह के साथ अपनी तीसी किरणों को निरन्तर पृथ्वी पर केन्द्रित कर रहा या मानो कि यह दिन अन्य सभी दिनों से पृथ्वी के प्रति अपनी श्रद्धा को व्यक्त करने के लिए अधिक उपयुक्त था । ____ जब मैंने यह सब देख और समझ लिया तो मैंने कोई काम पाने के लिए अपना भाग्य भाजमाने का निश्चय कर लिया । अपने चेहरे पर उदासीनता का सा भाव धारण कर मैं उस सस्ते पर चढ़ा जिसके नीचे मजदूर खाली ठेले लिए जा रहे थे । " पघाई दोस्तो भगवान तुम्हारा भला करें । " इस यधाई के बदले में मिला उत्तर बिल्कुल अप्रत्याशित सा था । पहवे मजदूर ने जो एक तेगदा भरे बालों वाला व्यक्ति था तथा घुटनों तक पाजामा पोर कन्धों सक क्मीज की बाहें चढ़ाए या तांबे के से रंग के अपने शरीर का प्रदर्शन करते हुए मेरी बात को नहीं सुना और मेरी तरफ तनिक भी ध्यान न देकर भागे यह गया । दूसरे मजदूर ने जो भूरे घालों तया कंजी धागों वाला व्यक्ति था , मेरी तरफ दुरमन को सी नजर से देखा और एक भारी गालो देते हुए मुंह चिढ़ाया । वीसरे ने जो स्पष्ट रूप से एक प्रोक या क्योंकि उसका रंग मासी की तरह भूरा तथा बाल घुघराले थे - ऐमा भार प्रकट दिया कि उसे इस यात का दुख है कि उसके दोनों हाथ घिरे हुए हैं इसलिए यह घूसो से मेरो नाक का स्वागत करने में समर्थ है । यह बात एक ऐसे उदा सोनता पूरसर में कही गई थी जिसका उस इच्दा में कोई सम्बन्ध नहीं
- या । चौधे ने अपनी पूरी तारत मे चीखते हुए कहा -- "हलो, ग्नारटी गायों
याले धन्धे ! " और उसने मुझे ठोकर मारने की कोशिश की । शार मैं गलती नहीं करता तो यह स्वागत चैमा ही था जिसे सत्य समाज में उपेसा पूर्व स्वागत कहा जाता है और इससे पहन्ने दस प्रभारणाली इंग में मेरा ऐमा स्वागत कहीं भी नहीं हुधा या दुनो होरर मन अनजाने ही अपना घरमा उतारा और जेब में रख लिया फिर फोरमैन की तरफ शाम