पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/१९४

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आवारा प्रमी १९७ "उस दिन दो विद्यार्थी हमारे समाचार पत्र पर बहस कर रहे थे । एक बोला कि प्रम वटा खतरनाक व्यापार है, परन्तु दूसरा बोला -नहीं, इसमें कोई खतरा नहीं ? देखा वे दोनों कैसे चालाक है ? लड़कियों इन विद्यार्थियों को ही पसन्द करती हैं । ये उन्हें टतना ही चाहती है जितना कि भौजियों को । " हम लोग घर से चल दिए । सदकों के ऊचे नीचे लगे हुए पत्थर , वर्षा के जल से धुल कर, सरकारी कर्मचारियों की गंजी खोपड़ी की तरह चमक रहे थे । श्रासमान धर्फ जैसे सफेद बादलों से ढका हुया या धोर यदा कदा सूर्य उनके बीच में से झांकने लगता था । पतझड़ की तेज हवा मनुष्यों को सूखे पत्तों की तरह सड़क पर उदाए लिए जा रही थी । यह हम पर आक्रमण करती और कानों में सनसनाती । शाका ने जाड़े से कॉप कर अपनी मेली, चिकनी पतलून की जेयो में हाथ घुसेड़ लिए । वह एक हल्की जाकेट , एक नीली कमीज और एदो पिसे हुए पीले ऊँचे चूट पहने हुए था । " अई - रात्रि को एक बान अाकाश में ऊपर उड़ा । " उसने हमारी पग -ध्वनि से ताल मिलाते हुए गाया । " मुझे यह कविसा अच्छी लगती है । वह क्सिने लिखी है ! " " बरमोन्टोव " मैं हमेशा ससे नेकासोव के नाम के साथ जोद देता है । " " और यह बहुत समय तक इस संसार में पता रहा, हृदय में विचित्र इन्छाएं लिए हुए । " और अपनी हरी बातों को मटकाते हुए उसने धीमी आवाज में दुहराया - " हृदय में विचिन इच्छाएं लिए हुए । " ___ "मेरे भगवान में से कितनी अच्छी तरह समझ गया हूँ, इतनी अच्छी तरह कि में स्वयं उड़ने की इच्छा करने लगता हूँ . " अद्भुत इच्छाएं....... एक पुराने मैले से घर के दरवाजे से एक लड़की सुट्टी के दिन की पोशाक में बाहर निकाली । यह लाल रंग को कट , काला ब्लाउज जिस पर जरी का काम हो रहा था और सुनहले रंग का एक रेशमी शान पहने हुए पी ।