पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/१९

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मालवा रही हालांकि उसका चेहरा पीला पड़ गया था और उसकी आँखें खून की तरह बाल हो उठी थीं । उसने केवल वासिनी के हाथों पर अपने हाय रखे जो उसके गले को दबा रहे थे और उसके चेहरे की ओर घूरने लगी । " अच्छा तो तुम इस तरह की औरत हो ? ” वासिली ने कर्कश आवाज में कहा । वह गुस्से से पागल होता जा रहा था । "तुम अब सक इस बारे में खामोश रही .. . बदतमीज मुझ से खेलती रही . .. मुझे थपथपाती रही....अब मैं तुम्हें बता दूंगा ! " उसने मालवा का सिर नीचे मुकाया और पूरी ताकत से उसकी गर्दन में घुसे मारे - दो भारी से अपनी मजबूती से बाँधी हुई मुट्टी द्वारा । जब उसकी कोमल गर्दन पर घूसे पड़े तो वासिनी को बहुत अधिक प्रानन्द प्राप्त हुआ । "यह ले .. सांपिन ! " उसे दूर फेंकते हुए वासिनी गर्व से बोला । विना साँस लिए वह जमीन पर गिर पड़ी और पीठ के बल पड़ी रही - शान्त, चप , बिखरी हुई , पीली परन्त सन्दर । उसकी हरी खिं अपनी पलकों के नीचे से उसकी तरफ तीन घृणा से देखती रहीं परन्त वासिनी उत्तेजना से होपते और अपने गुस्से को पूरा कर उससे उत्पन्न हुए सन्तोष का अनुभव करते हुए , उसकी इस निगाह को नहीं देख पाया । और जब उसने मालवा की तरफ विजय पूर्वक देखा तो वह मुस्कराई - उसके पूरे होंठ मुख गए , पाखों में से प्रकाश की ज्वाला निकलने लगी और गानों में गड्ढे पड़ गये । वासिनी ने आश्चर्य से चकित होकर उसकी ओर देखा । " क्या बात है, खूबसूरत नागिन ? " पुरी सरह से उसके हाथों को झकझोरते हुए वह चीखा । " वास्का " मालवा ने फुसफुसाहट के स्वर में कहा " क्या वह तुम थे जिसने मुझे मारा है ? " , और कौन ? " मालवा की ओर व्यग्रता से देखते हुए वासिनी सोला । उसकी समझ में यह नहीं पा रहा था कि क्या करे । इसे फिर