१८८ बुढ़िया इजरगिल विचार मग्न और दुखी बैठे रहते । परन्तु मनुष्य के शरीर और आत्मा को कठोर परिश्रम और भी इतना नहीं थका पातो जितना कि दुख पूर्ण चिन्तन थका देता है । इसलिए ये लोग अपनी इस चिन्ता से पीले पड़ गए । उनमें एक भय समा गया या जिसने उसकी भुजाओं की शक्ति को निर्वल बना दिया था । औरतें विषेलो वायु से मरे हुए मनुष्यों को देख कर बुरी तरह चीखती चिल्लाती जिससे वहाँ एक भय का साम्राज्य छ। जाता । वे उन लोगों के भाग्य पर रोती जो भय से जकड़ गए थे । उस जगल में कायरता पूर्ण शब्द सुनाई देने लगे - पहले इनकी ध्वनि धीमी और निर्बल थी परन्तु बाद में सब खुल्लमखुल्ला चिल्लाकर इस प्रकार की बातें करने लगे । श्रादमी दुश्मन के हाथों अपनी स्वतन्त्रा बेचने को तैयार हो गए । सब पर मृत्यु का भय छाया हुआ था । गुलामी की जिन्दगी से कोई भी भयभीत नहीं था । परन्तु उसी समय दान्को सामने पाया और उसने विना किसी सहायता के इन सब को बचा लिया । " यह स्पष्ट हो रहा था कि इस बुढ़िया ने यह कहानी पहले भी कई वार दूसरों को सुनाई है, क्योंकि वह एक निश्चित शैली और सगीत पूर्ण ध्वनि के साथ इसे सुना रही थी । ठमको धीमी और कर्कश आवाज ने मेरी कल्पना में उस जगत का स्पष्ट चित्र शक्ति कर दिया जहाँ चे अभागे आदमी दलदल की जहरीली गैस से मर रहे थे । "दाको उन्हीं पुराने पादमियो जैसा था जवान और सुन्दर । सुन्दर मनुप्य हमेगा बहादुर होते है । उसने अपने साथियों से कहा - " तुम केवल सोच- सोच कर अपने मार्ग की चट्टान को दूर नहीं कर सकते । जो लोग कुछ । नहीं करने उन्हें कुछ भी नहीं मिल सकता । हम अपनी शक्ति इस सोचने पीर झीने में क्यों बर्बाद कर रहे हैं । साहम पूर्वक टठ खड़े हो । हम इस जगल को काट कर अपना मार्ग बनायंगे । उसका कहीं न कहीं तो अंत होगा ही ~ ममार की प्रयेक वन्नु का एक अन्त होता है । प्रायो, उठो , हम - टन्होंने उसकी शोर देगा और अनुभव किया कि वह
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