मोचीया की लड़की १४५ कभी-कभी, लिजा के कमरे में बैठा हुया पावेल अपनी स्त्री के विषय में सोचता और उसके हाथ शियिल हो जाते । उसका हृदय दुख और कड़वाहट से भर उठता । वह ठंडा पड़ जाता और लज्जा और क्रोध से अपनी लानत मलामत करने लगता : ___ " तुम अपने को प्रगतिशील और न जाने क्या क्या मानते हो । बुजुचा लोगों की शनैतिकता को बुरा भला कहने वाला और तुम यहाँ हो ... .. " इस व्याकुल कर देने वाले विचार से उसका ध्यान किसी प्रकार अन्य विचारों की तरफ चला जाता जो अायन्स गहरे और विस्तृत थे । ऐसे विचार जो अभी तक अस्पष्ट थे और जिनके विषय में यह बोलना चाहता था । बार बार उसने लिजा के सम्मुख अपने हृदय को वेदना को खोलकर रसा और अपनी स्त्री के विषय में बात की कि वह उसे फितना प्यार करता था और फिर भी उसके लिए लिजा के विना रहना कितना दुसदायक था । "जिस ताह मैं तुमसे बात करता है उस वह किसी भी दूसरे से नहीं कर सकता । मालूम पड़ता है कि प्रादमी में हमेशा कुर ऐमी यात रहती है जिन्हें यह सिर्फ एक स्त्री से ही कह सस्ता है । फिर भी मैं अपनी स्त्री से कहने में समर्थ हूँ । न मैं अपने कामरेदों में ही यह सकता है । कुछ भी हो , यह यदा विचित्र सा लगता है । प्रादमी को अपने विषय में बात करने में सजा पाती है शोर तुम्हें तो कह कर अपने मन का भार हल्का करना हो होता है ! " लिना ने अपनी सुरदरी हथेली और पतले हाथ की उंगलियों में उसका सिर थपथपाया और उसकी बात सुनती रही । ___ मैंने इस विषय पर बातें करने की कोगिश को परन्तु चादनी किताची भाषा में जवान देवे हैं -कितारें तो में मुंद पर माना है । प्रश्न विषय में साफ दाते याइने में लोगों को गर्म पाती । मेरा ग्यान है कि जो मुसीबत मेरे साय है यही दूसरे यसों के साथ है । प्रेमी याने जोरदय
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