पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/१४०

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१४२ मोस्वीया की लड़की - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - " मेरे एक बच्चा भी हुश्रा था " " उस तार बाबू का " " हाँ , वह मरा हुआ पैदा हुआ था । " " क्या वह तार बाबू अच्छा श्रादमी था ? " वह खुल कर मुस्कराई । " हाँ - नों , वह बहुत मजेदार बातें करता था । तुम्हारी ही तरह अकेला ही था । सब लोग उस पर हसते थे । वे उस अकेले को ही पकड ले गये । मुझे उन्होंने ठोकर मार कर बाहर निकाल दिया । " हवा चिमनी में एक आवारा बुड्ढे कुत्ते की तरह चीख उठी । जिन्दगी बिलकुल मूठी लगने लगी और विश्वासघात एक फोड़े की तरह पावेल के श्रास्म सम्मान की जड़ों को कुरेदने लगा । वह अपनी स्त्री को प्यार करता था । उसकी मजबूत , चौड़ी और गर्म देह को अपनी बाहों में भरना उसे अच्छा लगता था । उसकी काली आँखों में झलकता हुआ वासना को उत्तेजित करने वाला भाव पावेल के ऊपर बहुत गहरा प्रभाव डालता था । ____ कभी कभी जब वह अच्छे मूड में होती जो अक्सर बहुत कम ही आते ये - तो वह पावेल से बहुत धीमी नाक की आवाज़ में कहती. "कहो, अपनी स्त्री के पास जाकर उसे प्यार करने और चूमने का ___ तुम्हारा इरादा है , सुस्त लड़के ? " ___ कभी कभी कई दिनों और हफ्तों तक वह शहर की बाहरी सीमा पर वने हुए उस काले और टूटे फूटे पुराने छोटे से मकान को विल्कुल भूल जाता । वह मकान जो मिट्टी की झोपड़ो की तरह जमीन में गढ़ा हुआ दिखाई देता । जिसकी दोनों खिडकियों में काँच नहीं थे, छत पर घास जम रही थी और एक अँधेरे कमरे का कोना और उसके रहने वाले वे गूंगे , निर्वल , रात में धूमने वाले प्राणी श्रादि सभी की स्मृति उसके मस्तिष्क से मिट जाती, उनका कोई थस्तित्व नहीं रहता और अगर उनकी स्मृति पाती भी तो एक बुरे सपने की तरह उसके दिमाग में टठती । पावेल मुक्ति की सांस लेकर सोचता