१३८ मोट्वीया की लड़की - - लौट आई जिसे उसने अंगीठी के ऊपर सुखाया और पावेल से श्राग्रह करने लगी "तुम अपने कपड़े बदन लो । यह औरत की पोशाक है लेकिन कम से कम सूखी तो है . .. " उस कपड़े को मेज पर फेंक कर फिर बाहर गई । याकोव ने अपनी आँखों से उसका पीछा किया और उसके विचार धुंधले हो उठे मानो वह सपना देख रहा हो । ___ " भाग्य भाग्य ? क्या येवकूफी है । मेरे लिये तो यह जगह जाने योग्य है और उसके लिए यह सब एक ही जैसी बात है । " उसकी चेतना में वे सारी अपमान की बातें चक्कर काट रही थीं जैसे उसके पतले होठों वाले ससुर की फुसफुसाहट हमेशा उसके कानों में गूजती रहती थीः " परेशान हो उठे , उँह ? कामरेटों से ? इस मुसीबत के समय तुम अपने कामरेडों के पास क्यों नहीं गए , उनके पास क्यों नहीं जाते ? प्रहा । शर्म आती है , क्यों ? " उसने अपने भीगे बालों पर हाथ फेरा और होंठ एक तकलीफ - भरी मुस्कराहट के साथ ऐंठे । " तुमने कपड़े क्यों नहीं बदले ? " मेजमान ने दरवाजे से मॉकते हुए अभ्यस्त स्वर में कहा । उसके गीले कपड़े शरीर से चिपक गए ये जिससे वह वार बार ठह से कॉप उठता या । पावेल ने जल्दी से उन्हें उतारा और उस औरतों वाली लम्बी पोशाक में लिपट गया । " शव ठीक है " लड़की ने भीतर पाते हुए कहा । " कैसा अजीब सा लग रहा हूँ ? " उसने पला । " हाँ " लकदी ने स्वीकार किया परन्तु उसके चहरे पर शैतानी से भरी हुई मुस्कराहट नहीं थी । पावेल ने पहली बार उस लड़की को गौर से देखा । वह छोटे कद
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