पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/१३२

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मोद्वीया की लड़की " श्रोल्गा कहाँ है ? " " श्रोल्गा कहाँ है ? तुम नहीं जानते कि प्राज सव भले श्रादमियों की छुट्टी का दिन है । वह अपने नाना के साथ गिरना गई है " पावेल मित्रभाव से बोलाः " अच्छा । मुझे इसमें कोई अक्लमन्दी नहीं दिखाई देती । इस खराब मौसम में बच्ची को उस जगह ले जाना ठीक नहीं था " वह चुप हो गया । उसने महसूस किया कि उसने अनेक बार अपनी स्त्री के व्यग का उत्तर इन्हीं शब्दों में दिया है । श्राटा गूंधते समय जोर लगाने से मेज चरमरा उठती थी । " क्या मैं उसे बता दें कि तुमने मुझे पतन के गर्त में कितना नीचे गिरा दिया है, क्या तुम देख रहो हो ? देखो तुम मुझे किधर खदेड़ रही हो , क्या में यह बता दूं ? " अचानक उत्साह में भर कर वह उसके पास गया और उसके कधों पर हाथ रख दिया । " अपने हाथ हटा लो " उसने सिर को झटका देते हुए चीख कर कहा । गुस्से से उसका मुंह और गर्दन लाल हो गए । " जहन्नुम में जाना-वर्ना मैं तुम्हारा मुंह तोड़ दूंगा " वह तम कर खड़ी हो गई और आटे में सने हुए हाथ अपने बालों पर फेरे जिससे वे भूरे हो गए । " भगवान रक्षा करे .. . ... " " दादा , दादा, " बच्ची चिल्लाई । पावेल उसे गोदी में लेना चाहता था परन्तु उसे याद आया कि । उसने रात कहाँ विताई थी और हाय धोने के लिये कमरे से बाहर खिसक गया । दिन भर उसकी स्त्री धुरांती और बड़बड़ाती रही और उसका ससुर पिना के बराबर सिरस्कार और न्यग्य की बौछार करता रहाः " श्रध्दा मिस्टर सामाजिक - राजनीविज्ञ , तुम समोसे क्यों नहीं