पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/१३०

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१३२ मोवीया की लड़की - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - -- - - - - - - - - - - - - - - - - उन्होने वाते की और फिर नगर की सड़कों पर बहुत देर तक घूमते रहे । रास्ते भर पावेल उत्तेजित अवस्था में अपने दुखी विवाहित जीवन के विषय में बातें करता रहा - अपनी स्त्री के विषय में जिसे उसने एक सौम्य नारी के रूप में देखने की प्राशा की थी परन्तु असफल रहा और जिससे वह अपने मन की बातें कह कर अपना जो हलका नहीं कर सकता था । लदकी ने कहा " अक्सर ऐसा होता है । " " अक्सर ? ” पावेल ने पूछा - "तुम कैसे जानती हो ? " " आदमी अक्सर शिकायत करते हैं " पावेल ने गौर से उसकी ओर देखा - कोई विशेषता नहीं थी विलकुल एक वेश्या का साधारण चेहरा था । फिर अपनी स्त्री की याद करते हुए उसने द्वषपूर्वक कहा । "तुमने यह बात पूछी है । और अब मुझे अपने यहाँ जाते हुए देखकर समझ लो " उसके घर पहुच कर उसने पुन वातें शुरू कर दी - जीवन और अपने विचारों के विषय में । फिर वह खाट पर गया और लडकी के उसके पास थाने से पहले ही सो गया । सुबह बहुत शरमाते और मिमकते हुए उसने उसके साथ चाय पी और उसकी नज़र को बचाता रहा । जाने से पहले उसने पैंतीस कोपेक उसके पास इतने ही थे - लड़की को देने चाहे । परन्तु उसने धीरे से उसका हाथ एक तरफ हटाते हुए अत्यन्त स्पष्ट स्वर में कहा "किमलिए इसकी काई जरूरत नहीं । " पावेल को उसको यह हरकत और उसके शब्द अच्छे नहीं लगे । "अच्छा " लडकी ने मजूर करते हुए चाटी के दो सिक्के उठा लिए और फिर कन्धे उचकाते हुए बोली . " दरअसल हमकी जरूरत तो नहीं थी "