मोवीया की लड़की १२७ बने हुए श्रहाते के छप्पर में जब वे मिले थे तो उस मोची ने अपनी शॉग्यों के आँसू पोंछते हुए ऊंचे स्वर में कहा था : " लढको । मुझे तुम्हारे लिये दुस है परन्तु सब ठीक है । भागे बड़े चलो । बहादुरी से श्रागे बड़ो । देखो, हम लोगो ने बहुत सहा है , हमसे जैसे कहा गया वैसे ही हम रहे , हम लोगों ने तुम्हारी सातिर धैर्य पूर्वक सब सहा और अब तुम लोगों को सहना चाहिये और यह सब तुम्हें अपने बच्चों के लिये सहना ही पडेगा । " और उससे - पावेल से- एक दिन उस मोची ने कहा था : "जब मै तुम्हें देखता है, मेरे बच्चे, और जब तुम्हारी बात सुनता हूँ तो मुझे यह दुस होता है कि मेरे इस लटकी के बजाय एक लड़का क्यों न हुया । मैं तुम जैसा बेटा पाने के लिये अपना सब कुछ न्यौदावर कर सकता था । " परन्तु जब से शहर के उन गुन्डे देशभक्तों ने वालेक की दाहनी आँख फोर दी उस बुड्ढे पादमी ने अपने विचारों को पूरी तरह से बदल लिया है । " केवल वही ना एक ऐसा नहीं है जो बदल गया हो । ” पावेल ने उदास होकर गांचा । उसको खो अपने शरीर को कृहपन में हिलाती हुई मेज साफ फरने लगी । गन्ती तस्तरियों को हटानी , अदी प्लेटों को पटग्यदाती और चम्मचों को नीचे गिराती हुई वह जोर से चीयो । " इम उठायो । तुम जानते हो कि मुझे भुक्ने में कितनी तकलीफ होनी है ! " "नही, नम राजनीति को दूसरे देशों पर छोट दो और अपने घरेलू मामलों को श्रोर ध्यान दो । " याकोव मोनी हुई यदी को भीतर ले गया । परमानी की मीदियों घरमराई और उसकी मी भी उसी तरह करवानी यानान में हिनहिना उठी :
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