११० कामरेड - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - के भूखे थे, क्योकि सब गुलाम थे । धनवानों की विलासिता गरीबों के हृदय में द्वष और घृणा उत्पन्न करती थी । वहाँ किसी भी व्यक्ति के लिये स्वर्ण की झनकार से अधिक सुन्दर और मधुर दूसरा कोई भी सङ्गीत नहीं था । और इसी कारण वहाँ का हरेक व्यक्ति दूसरे का दुश्मन बन गया था । सद्ध पर क्रूरता का शासन था । कभी कभी सूर्य उस शहर पर चमकता परन्तु वहाँ का जीवन सदेव अन्धकार पूर्ण रहता और मनुप्य छाया की तरह दिखाई देते । रात होने पर वे असख्य चमकीली वत्तियाँ जलाते परन्तु उस समय भूखी औरतें पैसों के लिए अपना कंकालवत् शरीर बेचने के लिये सड़कों पर निकल पाती । विभिन्न प्रकार के सुगन्धित भांजनों की सुगन्धि उन्हें अपनी ओर खींचती और चारों ओर भूखे मानव की भूखी अाँखें , चुपचाप चमकने लगतीं । नगर के ऊपर दुख और विपाद की एक वीमी कराहट, जो जोर से चिल्लाने में असमर्थ थो , प्रतिध्वनित होकर मडराने लगती । जीवन नीरस और चिन्ताओं से भरा हुआ था । मानव एक दूसरे का दुश्मन था और प्रत्येक व्यक्ति गलत रास्ते पर चल रहा था । केवल कुछ व्यक्ति ही यह अनुभव करते थे कि वे ठीक मार्ग पर हैं परन्तु वे पशुओं की तरह रूखे और क्रूर थे । वे दूसरो से अधिक भयानक और कठोर थे । हरेक जीना चाहता था परन्तु यह कोई नहीं जानता था कि कैसे जिये । कोई भी अपनी इच्छाओं का अनुसरण स्वतत्र रूप से करने में समर्थ नहीं था । भविष्य की ओर बढ़ा हुया प्रत्येक कदम उन्हें पीछे मुड़कर उस वर्तमान की ओर देखने के लिये वाध्य कर देता था , जो एक लालची राक्षस के शक्ति शाली और कर हाथों द्वारा मनुष्य को अपने रास्ते पर आगे बढ़ने से रोक देता और अपने चिपचिपे प्रालिंगन के जाल में फास लेता । मनुप्य जब जिन्दगी के चेहरे पर कुरूप दुर्भाग्य की रेखायें देखता तो कष्ट और थाश्चर्य विजड़ित होकर निस्सहाय के समान ठिठक जाता , जिन्दगी उसके हृदय में अपनी हजारों उदास और असहाय आँखों मे झाकती, और निशब्द रूप उससे प्रार्थना करती जिसे सुन कर भविष्य की सुन्दर श्राक्षाएं
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