पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/१०३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१०७ इन्सान पैदा हुआ ... . . जव मै लौटा तो मैने उसे समुद्र तट की ओर से लड़खडाती हुई टागो पर हाथ फैलाये चलता हुआ देखा । उसका पेटीकोट कमर तक भीगा हुआ था । उसके चेहरे पर चमक था गई थी । वह श्रान्तरिक प्रसन्नता से चमक रहा था । मैं उसे सहारा देकर श्राग के पास ले श्राया और ताज्जुव में भर सोचने लगाः " इसमें एक बैल की सी ताकत है ! " बाद मे , जब हम दोनों शहद के साथ चाय पी रहे थे, उसने धीरे से मुझसे पूछा " क्या तुमने किताब पढ़ना समाप्त कर दिया है ? " " क्यों ? क्या तुम शराब पीने लगे थे ? " "हाँ , माँ । मैं बुरी सोहबत में पड़ गया था ! " " यह तुमने अच्छा किया । मुझे तुम्हारी याद है । मैने सुखुम में तब । गौर से देखा था जब मालिक से साने के ऊपर तुम्हारा झगडा हुया था । तब मैने अपने श्राप कहा थाः यह जरूर शराब पीता है । वह किसी से भी नहीं डरता । " सपने सूजे हुए होठों से शहद चाटते हुए वह अपनी नीली आँना को बराबर उन्म झाड़ी की तरफ घुमा रही थी जहाँ वह नवजात श्रोरेल बासी शान्तिपूर्वक सो रहा था । ___ "यह कैसे जिन्दा रहेगा ? " उन्मने मेरे चेहरे की पोर देखते हुए गहरी साँस ग्नेकर कहा, " तुमने मेरी मदद की । उपके लिये मैं तुम्हें धन्यवाद देती रहूँ... परन्तु यह इसके लिये अच्छा भी रहेगा या नहीं ....मैं नहीं जानती । " जब उसने साना पा लिया तो लेट गई । जब तक मैं अपनी चीजें उपही करता रहा, यह पालस्य में बैठी हुई अपने शरीर को हिलाती रही पोर । पति जमीन पर गदाए हुए क्लिी विचार में हो रही ! उसको ओंवों की 1 पमक फिर गायब हो गई थी । कुछ देर बाद यह रठ पर सदी हो गई ।