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गोरा

गोरा [ के रागसे रञ्जित गोराका चमकता हुआ चेहरा स्पष्ट चित्रकी भाँति उसके स्मृति-पथ पर प्रकट हो गया । गोराका गम्भीर कण्ठस्वर उसे स्पष्ट सुनाई देने लगा-"श्राप जिन्हें अशिक्षित समझते हैं मैं उन्हींके दलमें हूँ। आप जिसे कुसंरकार कहते हैं मैं उसीको संस्कार कहता हूँ। जब तक आप देशको प्रिय न समझेंगे, देशके लोगोंके साथ एक जगह आकर खड़े न होंगे, जब तक उनके दुःखमें सहानुभूति प्रकट न करेंगे तब तक मैं अपके मुँहसे देशकी निन्दाका एक अक्षर भी न सुन /सकूँगा।" इसके उत्तरमें हारान बाबूने कहा - "ऐसा करनेसे देशका सुधार कैसे होगा ?" गोराने गरजकर कहा-~~-"सुधार ! तुधार दूसरी बात है। सुधारसे भी बढ़कर स्वदेश-प्रेम है--स्वदेशी वस्तुओं पर श्रद्धा है । जब हम लोगोका एक मन होगा, एक विचार होगा तब समाजका सुधार आप ही आप हो जायगा । श्राप तो अलग होकर देशको अनेक खण्डोंमें बाँटना चाहते हैं । इससे देशका सुधार होना कव संभव है। आप कहते हैं, देशके लोग कुसंस्कारसे जकड़े हैं। अतएव हन तुसंस्कार दलवाले अलग हो रहेंगे । मैं यह कहता हूँ कि मैं किसीकी अपेक्षा श्रेष्ठ होकर किसीसे अलग न रहूँगा, यह मेरी बड़ी इच्छा है । इसके बाद एक हो जाने पर कौन संस्कार रहेगा और कौन संस्कार न रहेंगा, यह मेरा देश जाने या देशके जो विधाता है वे जानें ।" हारान वाचूने कहा- देश में ऐसी कुप्रथा और कुसंस्कार छाया है जो एक होने नहीं देता ।" गोराने कहा-"यदि आप यह सोचें कि पहले उन सब प्रथाओं और संस्कारोंको एक एक कर दूर कर लेंगे तव देश एक होगा, तो यह आपकी समझ वैसी ही है जैसे कोई समुद्रको उलचकर उस पार जाना चाहे । 'अपमान और अहङ्कार को करके नन्न होकर सबको अपना सा समझना इस सर्व प्रियताके सामने सैकड़ों त्रुटियाँ और अनैक्यताएँ . भख मारेंगी। सभी देशोंके समाजोमें कुछ त्रुटि और अपूर्णता अवश्य है किन्तु देशके लोग जबतक स्वजातिके प्रेम-सूत्रमें बँधे रहते हैं तब वे त्रुटियाँ कुछ विशेष हानि नहीं पहुंचा सकतीं। सड़ानेका कारण हवा में है। ।