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गोरा

गोरा बन्धुओं के निकट विशेष विख्यात हो उठी थी। बहुत दिन हुए जब लावण्यने मेमकी सहायतासे यह अद्भुत वस्तु बनाई थी। इस रचनामें लावण्य का अपना कुछ विशेष हाथ तो नहीं था। किन्तु जिससे नई नई जान पहचान होती थी। उसीको यह नुमायशी तोता अवश्य दिखाया जाता था। यह एक निश्चित बात हो गई थी। उस तोते की रचनामें जो कारीगरी दिखाई गई थी। उसके लिये जिस्ट सन्य विनयके नेत्र विस्मयसे देख रहे थे, ठीक उसी समय नौकर ने अाकर एक चिट्ठी परेश बाबूके हाथमें दी। चिट्ठी पढ़ कर परेश बाबू प्रफुल्ल हो उठे। बोले बाबूको ऊपर ले प्रा। वरदाने यूछा- कौन है ? परेश बाबू ने कहा-~~-मेरे बचपनके मित्र कृष्णदयालने अपने लड़केको हम लोगोके साथ परिचित कराने के लिये भेजा है। एकाएक विनयका हृदय उछल पड़ा और उसका मुख विवर्ण हो गया। किन्तु उसके बाद ही वह मुट्टी बाँधकर खूब जी कड़ा करके बैठ गया, जैसे वह किसी प्रतिकूल पक्षके विरूद्ध अपने को दृढ़ रखनेके लिये तैयार हो उंठा गोरा इस परिवारके लोगोंको अश्रद्धाके साथ देखेगा और अश्रद्धा हीके साथ उनका विचार करेगा, इस ख्याल ने जैसे पहले ही से विनयको कुछ उत्तेजित कर दिया।