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गोरा

गोरा ४८७ । तरह से घोर कष्ट देने लगा गोराकी ओर से आज ये आज्ञा क्यों हैं ! अवश्य ही सुचरिताके लिए भी ऐसा समय उपस्थित होगा, उसको भी एक दिन व्याह करना ही होगा-किन्तु उसके लिये गोरा को इतनी शीघ्रता करने का क्या कारण हुआ है, उसके सम्बन्धमें गोराका काम क्या बिल्कुल ही समाप्त हो गया, वह क्या गोराके कर्तव्यमें कुछ हानि कर रही है, उसके जीवनके मार्गमे कोई बाधा डाल रही है ? उसके लिये गोराको देनेका या उससे प्रत्याशा करने का कुछ भी नहीं है ? उसने लेकिन इस तरहसे सोचा नहीं था, वह तो इस समय भी गोराकी प्रतीक्षा कर रही थी। सुचरिता अपने भीतर के इस असत्य कष्टके. विरुद्ध युद्ध करने के लिए प्राण-पण से चेष्य करने लगी; किन्तु उसने मनमें कहीं भी कुछ भी सान्त्वना नहीं पाई । हरिमोहिनीने सुचरिता को सोचने के लिये बहुत सा समय दिया । उन्होंने नित्य नियमके अनुसार कुछ देर तक सो भी लिया । नींद खुलने पर सुचरिताके कमरे में आकर उन्होंने देखा, वह जैसे बैठी थी, वैसे ही अब तक चुपचाप बैठी हुई है। हरिमोहिनीने कहा-राधारानी मला तू इतना सोच-विचार क्यों कर रही है ? इतना सोचने की ऐसी कौन सी बात है ? क्यों, गौरमोहन बाबू ने इसमें क्या कुछ अन्याय की बात लिखी है ? सुचरिताने शान्त स्वरमें कहा.-ना, उन्होंने ठीक ही लिखा है। हरिमोहिनी अस्यन्त आश्वस्त होकर कह उठी तो फिर अब और देर करके क्या होगा बेटी? सुचरिता-ना, मैं देर करना नहीं चाहती । मैं जरा बाबूजी के पास जाऊँगी। हरिमोहिनी-देखो राधारानी, तुम्हारे बाबूजी यह कभी नहीं चाहंमै कि तुम्हारा बाह हिन्दु समाजमें : हो। किन्तु तुम्हारे जो गुरु है, वह"