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इस आघातसे गोराके मनका भाव बदल गया ! सुचरिताके द्वारा जो गोराका मन आक्रान्त हुआ था, उसने उसका कारण सोचकर देखा वह उन लोगों के साथ हिल-मिल गया है, कब कैसे उन लोगोंके साथ इस तरह मिल गया, इसका ज्ञान उसे न रहा । जो निषेध की सीमा थी उसे गोरा भूलसे लाँच गया है । यह हमारे देशकी रीति नहीं है । कोई अपनी सीमा की रक्षा न कर सकने पर, जानकर या न जानकर, केवल अपनाही अनिष्ट नही कर डालता वरन् दूसरेका हित करने की शक्ति भी उसकी चली जाती है। हृदय की वृत्ति संसर्गसे प्रबल होकर ज्ञान, निष्ठा और शक्तिको मलिन कर देती है । निर्मल बुद्धि भी संसर्ग से बिगड़ जाती है।

केवल ब्राह्म-घरकी लड़कियोंके साथ मिलने जाकर गोरा अपनेको भूल गया हो, सो नहीं; वह जो आस-पासके गाँवमें साधारण लोगोंके साथ मिलने गया था, वहाँ भी वह मानों एक भ्रम-जालमें पड़कर अपनेको भूल सा गया था। क्योंकि उसको पग-पग पर दया उपजती थी इसी दयाके वश होकर वह केवल यही सोचता था कि यह काम बुरा है, यह अन्याय है, इसको दूर कर देना उचित है । किन्तु यह दयावृत्ति क्या नले बुरे सुविचारकी योग्यताको विकृत नहीं करती ? दया करने की भोक जितनी ही बढ़ उठती है, उतनी ही निर्विकार भावसे सत्यको देखने की हमारी शक्ति क्षीण पड़ जाती है। दया-वश हम अयुक्त विचार करनेको बाध्य हो पड़ते हैं।

इसीलिये जिसके ऊपर देशके समस्त हितका भार है, उसको सबसे निर्लिप्त होकर रहने की विधि हमारे देशमें चली आती है। प्रजाके साथ

घनिष्ट भावसे मिलने ही पर राजा प्रजाका पालन कर सकता है, यह

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