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गोरा

1 गोरा [४६ आनन्दमयी सम्मिलित होनेकी वात क्या कहती हो ! मैं क्या बाहर की हूं जो शरीक न होऊँगी । यह तो अपने घर का काम है। सत्र काम मुझको करना होगा । विनय क्या मेरा दूसरा है ? किन्तु मैंने उससे कह रक्खा है कि इस विवाहमें सब काम में लड़की की ओर से करूंगी वह मेरे घरमें ललितासे व्याह करने जा रहा है माँ होकर भी वरदासुन्दरी ने अपनी प्यारी बेटी ललिता को इस शुभ काममें त्याग दिया है, इसी से आनन्दमयी का हृदय दया से परिपूर्ण हो गया है। इसी कारण वह ऐसी चेष्टा कर रही है जिससे इस विवाहमें किसी तरहकी कोई त्रुटि न होने पात्रे । वह ललिताको माँका प्रासन ग्रहण कर उसे विवाह मण्डपमें लावेगी । यदि दो चार निमन्त्रित व्यक्ति आवेगे तो उनके अादर सत्कार में किसी तरह की त्रुटि न हो, इसकी देख माल करेगी। और इस नये घरको ऐसे दङ्ग से सजावेगी जिससे ललिताके मनमें मकानकी सजावट पर कोइ खेद न रह जाय । सुचरिता----इससे आपके बरमें कोई विरोध तो उपस्थित न होगा? महिम जिद्द पकड़े हुए है, उसे स्मरण करके आनन्दमयों ने कहा- ऐसा हो सकता है, परन्तु उससे क्या होगा। कुछ बखेड़ा होगा ही। चुपचाप सह लेनेसे कुछ दिनोंमें सब उपद्रव शान्त हो जायगा। आनन्दमयी के आने की खबर हरिमोहिनी पा गई थी। वह अपने हायका काम सँबार कर धीरे-धीरे उस कोठेमें आई, और बोली-वहन आप अच्छी तो हैं ? न कभी दर्शन देती हो न खबर ही लेती हो ! आनन्दमयी ने कहा-तुम्हारी बहनोती को लेने आई हूँ। यह कहकर उसने अपना अभिप्राय प्रकट किया। हरिमोहिनी कुछ देर मुंह फुलाये चुप रही, पीछे बोली-मैं तो इस कार्य में न ज सकेंगी? श्रानन्दमयी-नहीं बहन, हम क्यों जाप्रोमी ? में तुमको चलने के लिए नहीं कहती। सुचरिता के लिये तुम कोई चिन्ता न करो, मैं तो उसके साथ ही रहूँगी। फा० न० २६