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गोरा

गोरा [ ४४१ से नीचे उतर आई और सुचरिताके पास जाकर बोली- राधा रानी? यह सब क्या हो रहा है ? मेरी तो समझमें ही नहीं आता। सुचरिना-मौसी, तुम दिन रात मेरे ऊपर ऐसी सतर्क दृष्टि क्यों रखती हो? हरिमोहिनी-क्यों रखती हूँ सो क्या तुम नहीं जानती! तुम न कुछ खाती हो न पीती हो, मुँह , दकर रोती रहती हो । यह कैसा लक्षण है ! मैं बच्ची नहीं हूँ, क्या मैं इतना भी नहीं समझ सकती ? सुचरिता-सच पूछो तो तुम कुछ नहीं समझती ! तुम ऐसी भयानक भूल समझ रही हो, ऐसा नासमझी का काम कर रही हो, जो अब मुझसे किसी तरह बरदाश्त नहीं होता । हरिमोहिनी-अच्छा, अगर मैं गलत समझती हूँ तो तुम अच्छी तरह समझाकर क्यों नहीं कहती ? सुचरिता ने सब सङ्कोच हटाकर कहा-अच्छा तो मैं कहती हूँ। मैंन अंपने गुस्से एक ऐसी शिक्षा पाई है जो मेरे लिए बिलकुल नई है, उसको पूर्ण रूपसे ग्रहण करने के लिए विशेष शक्ति की आवश्यकता है। मुझमें वह शक्ति नहीं है, इसीकी मुझे चिन्ता है। मैं और किसी वातके लिए कुछ नहीं सोचती। किन्तु तुम हमारे सम्बन्ध को बुरी दृष्टिसे देखती हो, तुमने मेरे गुरुको अपमानित करके बिदा कर दिया है, तुमने उनसे जो कुछ कहा है सब तुम्हारी भूल है। तुम मेरे विषय में जो सोचती हो, सब झूठ है । तुम अन्याय कर रही हो । उनके सदृश महान् पुरुषको तुम लाञ्छित कर सको ऐसी तुम्हारी सामर्थ्य नहीं। किन्तु तुमने मुझ पर ऐसा अत्याचार कयों किया है ! मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ! हरिमोहिनी हत्बुद्धि हो वहीं बैठी रहीं । उसने मन ही मन कहा- अरे दादा ! ऐसी बात तो मैंने सात जन्म में भी न सुनी थी। सुचरिता को कुछ ठण्डी होनेका समय देकर कुछ देर बाद हरिमोहिनी उसे खाने के लिए बुला ले गई । जब वह खानेको बैठी तब हरिमोहिनी ने 'कहा-देखो राधा रानी, मेरी उम्र कम नहीं, मेरे, सब बाल पक गये। । ।