यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
४३६ ]
गोरा

४३६.] गोरा उनको भक्ति करनेकी ममता अगर न हो तो कम से कम उनकी दिलगी करनेकी क्षुद्रतासे अपनी रक्षा करो। गोराको मजबूरन फिर अपने दलके लोगोंके साथ पहलेके अभ्यस्त काममें लग जाना पड़ा । किन्तु फीका सब फीका ! यह कुछ भी नहीं है। इसे कोई काम ही नहीं कहा जा सकता है। इसमें कहीं भी जान नहीं है। इस तरह. केवल लिख-पढ़ कर लेक्चर देकर, वाते और बहस करके दल बांध कर तो कोई काम नहीं होता, बल्कि बहुत कुछ बेकारके काम जमा हो रहे हैं। इधर प्रायश्चित की समाका आयोजन चल रहा था । इस आयोजन में गोराको जरा विशेष उत्साह मालूम पड़ा है। वह प्रायश्चित्त केवल जेलखानेकी अपवित्रताका प्रायश्चित्त नहीं है। इस प्रायश्चित्त के द्वारा सभी अोर सम्पूर्ण रूपसे ममता त्यागकर फिर एक बार जैसे नई देह लेकर अपने कर्म-क्षेत्रमें वह नया जन्म प्राप्त करना चाहता है। प्रायश्चित्त का विधान लेलियां गया है, दिन भी ठीक होगया है। अविनाशने गुप्त रूपसे अपने दलके लोगोंके साथ सलाह की है कि उस दिन सभा में सब पंडितों के द्वारा, धान्य, दूर्वा, फूल.चन्दन आदि विविध उपचारों से अर्चा कराकर गोराको हिन्दू धर्म प्रदपकी उपाधि दी जायगी । इस तरह उस दिनकी कार्य प्रणालीको अत्यन्तः हृदयग्राही और फल प्रद बना देनेके लिए गोरासे छिपाकर उसके दलके लोगोंमें परस्पर नित्य परामर्श चलने लगा।