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गोरा

गोरा बाय तो मैं इसी घरसे सब ठीक-ठीक इन्तजाम कर दे सकती हूँ-कुछ मंझट न करना होगा। गोरा–यह न होगा माँ। अानन्द -क्यों न होगा ? उन (पति) को मैंने राजी कर लिया है। गोरा-नहीं माँ यह ब्याह यहाँ न हो सकेगा--मैं कहता हूँ मेरी बात सुनो। आनन्द--क्यों विनय तो उन लोगोंके मनसे व्याह नहीं कर रहा है। गोरा-ये सब बहसकी बातें हैं। समाज के साथ वकालत नहीं चलेगी । बिनयकी जो खुशी हो सो करे--हम इस ब्याहको नहीं मान सकते। कलकत्ता शहर इतना बड़ा है-यहाँ घरों की तो कमी नहीं है। उसका अपना डेरा ही स्वाली है। आनन्दमयी यह जानती थी कि घर बहुत मिल सकते हैं । किन्तु उनको यह बात खटक रही थी कि विनय आत्मीय बन्यु सबसे परित्यक्तहो कर बिल्कुल बन्धुबान्धव हीन बदनसीब आदमी की तरह किसी तरह अपने डेरम बठकर व्याहकी रस्म पूरी कर लेगा। इसी कारण उन्होंने अपने घर के उस नुदे हिसमें जो किराये पर उठाया जाता है विनयका ब्याह करने का विचार मनमें पक्का कर चुकी थी। इससे यह होगा कि समाजके साथ. कोई झगड़ा न खड़ा करके वह अपने ही घरमें इस शुभ कार्यका अनुष्यान करके सन्तुष्ट हो सकेगी! गोरा की दृढ़ आपत्ति देखकर लम्बी साँस छोड़कर उन्हींसे कहा तुम लोगांका अगर इतना नापसन्द है, तो दूसरी ही जगह किरायेका घर ठीक करना होगा। लेकिन उससे मेरी बड़ी खींचतान होगी। खैर जर यह हो ही नहीं सकता तब इसके लिये सोच करना वृथा है।

गोराने कहा-माँ, इस व्याह में तुम शामिल होगी तो बात नह

बनेगी।