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गोरा

गोरा [ ४३ वही भगवान् कभी मुगलोंके और कभी क्रिस्तानोंके पैरोमें इस तरह तुम्हारा सिर क्यों भुका दे रहे हैं ? कृष्ण—ये सब बड़ी और बहुत बातें है, तुम स्त्री की जाति उन सब बातोको नहीं समझ सकोगी। किन्तु हमारा समाज एक है, यह तो समझती हो, उसे तो मानकर चलना ही तुमको उचित है । आनन्द-मुझे यह सब समझनेसे कुछ मतलब नहीं है। मैं यही समझती हूं कि जब मैंने गोरा को अपना लड़का मानकर पाला पोसा है, तब आचार-विचारका अाडम्बर करनेसे, समाज या न रहे, धर्म नहीं रहेगा मैंने केवल उसी धर्मके भयसे किसी दिन कुछ छिपाया नहीं मैं । कुछ भी नहीं मानती, यह बात सबको जानने देती हूँ। और सबकी घृणा वटोर जर चुबचाप पड़ी रहती हूँ। मैंने केवल एक ही बात छिपाई है और उसके लिए भयके मारे अधमरी हो गई हूँ कि ठाकुर जी न जाने कब क्या करें देखो मैं सोचती हूँ गोरासे सब हाल खुलासा कह दूँ, उसके बाद जो भाग्यमें बदा होगा, वहीं होगा। कृष्णदयाल बबराकर कह उठे-ना ना, मेरी जिन्दगीमें किसी तरह यह नहीं हो सकता । गोरा को तुम जानती ही हो । नहीं कहा जा सकता कि यह बात सुनकर वह क्या कर बैठेगा। उसके बाद समाजमें एक हलचल मच जायगी। सिर्फ इतना ही न होगा, उधर गवर्नमेन्ट यह स्त्रबर पाकर क्या करेगी सो भी नहीं कहा जा सकता। यषि गोराका बाप लड़ाई में मारा गया है, और यह भी मैं जानता हूँ कि उसकी मां भी मर गई है, किन्तु सब हँगामा खतम हो जाने पर हमें मजिस्ट्रेटके यहाँ इसकी खबर देना उचित था। इस समय अगर इस बातको लेकर कुछ गड़बड़ उठ खड़ी हुई तो मेरा साधन भजन सब मिट्टीमें मिल जायगा, और मी क्या आफत सिर पर आवेगी सो कुछ कहा नहीं जा सकता। आनन्दमयीने कुछ उत्तर नहीं दिया, चुपचाप बैठी रहीं । कुछ देरके बाद कृष्णदयालने कहा-मैंने गोरा के ब्याह के बारे में मन ही मन एक - }