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४२८ ]
गोरा

४२८ ] गोरा सहज है किन्तु इससे वें तुमको ले जाकर गृहणी बनावें इस बात की कभी मन में कल्पना भी न करना। खाना पकाना सब भूलकर सुचरिता विदयुत-वेग से खड़ी होकर बोली -आप यह क्या कह रहे हैं ? हारान बाबू-यही कह रहा हूँ कि गौर-बाबू कभी तुमसे ब्याह न करेंगे सुचरिता की आँखें लाल हो गई। वह बोली-विवाह ? मैंने आपसे कहा नहीं है कि वे मेरे गुरु हैं ? हारान-सो तो कहा है किन्तु जो नहीं कहा है, वह भी तो हम अपने बुद्धिबल से जान सकते है । सुचरिता--आप अभी यहाँ से चले जायँ । मेरा अपमान न करें। खैर, अब ऐसी बात न बोलें । यह बात मैं आज आपसे कह रहती हूँ कि आज से मैं आपके सामने बाहर न हूँगी । हारान- हमारे आगे अब किस विरते पर निकलोगी? अब तुमने कलेवर जो बदल डाला है ! अब तुम हिन्दू रमणी ! सूर्य भी तुम्हें नहीं देख सकेगा, मैं किस गिनती में हूं। परेश बाबूके पाप का घड़ा भर गया। वे इस ढलती उम्र में अपनी करनी का फल भोगे । हम जाते हैं । सुचरिता खूब जोर से रसोई घर का द्वार बन्द करके बैठ रही और आँचल का कपड़ा मुँह में दूंसकर रोने की आवाज को दम साधकर रोकने लगी । हासन बाबू चले गये । हरिमोहिनी दोनों का कथोपकथन सुन रही थी। आज उसने सुचरिता के मुंह से जो सुना वह सुनने की उसे आशा न थी । उसका हृदय हर्ष से फूज उठा ? वह बोली- नहीं होगा ! मैं जो एकान मनसे अपने गोपी- बल्लम की पूजा करती हूँ वह क्या सब वृथा जायगी। हरिमहिनीने तुरन्त अपने पूजा-गृहमें जाकर अपने ठाकुरजी को साष्टाङ्ग प्रणाम किया और पूजाके काममें लग गई। ।