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गोरा

गोरा हारान बाबूने फिर यों कहना शुरू किया--तुम्हींने विनय और गोरा को अपने घरमें बिठा-बिठाकर उन्हें यहाँ तक बढ़ाया है कि वे अब तुम्हारे आझ मनाज के किसी व्यक्ति को कुछ मन में नहीं लाते तुम्हारे ब्राझ-समाजके समी श्रेष्ठ लोगों की अपेक्षा यही दोनों हिन्दू युवक तुम्हारे लिए विशेष मान्य हो उठे हैं। इसका फल क्या हुआ है सो देखती हो न ? क्या मैं पहले ही से तुमको बराबर सावधान करता नहीं आता हूँ ? श्राब क्या हुन्ना, यह आँख पसारकर देखा न ! आज ललिता को कौन रोकेगा ? तुम सोचती हो, ललिता के ऊपर से ही होकर विपत्ति की आँधी चली जायगी! लेकिन ऐसा नहीं है। अाज मैं तुमको सावधान करने आया हूँ | अब तुम्हारी बारी है। आज ललिता की दुर्घटनासे तुम जरूर ही मन ही मन पछता रही हो, किन्तु वह दिन दूर नहीं जिस दिन तुम अपने अधःपतन पर जरा भी नं पछतानोगी। किन्तु अब भी संभलने का समय है। सुबह का भुला अगर शाम को घर या जाब तो वह भूला. नहीं कहलाता ! एक बार तुम सोच देखो, एक दिन कितनी बड़ी अाशाके भीतर हम तुम दोनों पड़े थे। हम लोगों के कितने ही शुभ सङ्कल्प थे और हमने कितने ही काम की बातें सोच रक्खी थीं । क्या वे सब नष्ट हो गई है ! कमी नहीं । हमारी उस अाशाकी क्यारी अब भी वैसी ही लहलहा रही है। सिर्फ एक बार तुम मुँह फेरकर देखो, जिधर जा रही हो उधरसे एक बार लौट अायो। सुचरिता तब तेल में तरकारी भून रही थी चूल्हे परसे कड़ाही को नीचे उतार मुँह फिराकर दृढ़ता भरे स्वर में बोली-मैं हिन्दू हूँ। हारान बाबूने एकदम हतबुद्धि होकर कहा- -तुम हिन्दू हो? सुचरिता--जी हाँ, मैं हिन्दू हूँ हिन्दू ! यह कहकर वह फिर कड़ाहीको चूल्हे पर चढ़ाकर बार-बार तरकारी को उलटने-पलटने लगी। हासन बाबू कुछ देर तक इस चोटको किसी तरह बरदाश्त करके