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४२ ]
गोरा

४२ ] गोरा सोचनेकी हैं । न्यायसे मेरी सारी जमा और जायदाद महिमको ही मिलनी चाहिए. वहीं है। श्रानन्द० --तुम्हारी जमा और जायदाद का हिस्सा कौन लेना चाहता है। तुमने जो रुपये जमा किए हैं, सो सब तुम महिमको दे जाना- गोरा उसमेंसे एक पैसा भी नहीं लेगा। वह मर्द बच्चा है, लिखा पढ़ा है खुद मेहनत करके कमा खायगा-बह पराए धनमें हिस्सा लगाने क्यों जायेगा । वह जीता रहे, यही मेरे लिए बहुत हैमुझे और किसी सम्पत्ति की दरकार नहीं है। कृष्ण -ना, मैं उसे कुछ भी न दूं, यह न होगा । जागीर उसी को दे दूंगा। किसी समय उसका मुनाफा एक हजार रुपए साल तक हो सकेगा। अव चिन्ताकी बात सिर्फ यह है कि उसके व्याहका क्या होगा! पहले जो कुछ मैंने किया, सो किया; लेकिन अब तो हिन्दू मतके अनु- सार ब्राह्मण के घर उसका ब्याह नहीं कर सकूँगा-इसमें चाहे क्रोध करो या चाहे जो करो। श्रानन्द ----हाय हाय ! तुम समझते हो कि मैं तुम्हारी तरह पृथ्वी भर पर गङ्गाजल और गोवरसे चौका नहीं लगाती फिरती, इसलिए मुझे धर्मका ज्ञान भी नहीं है। ब्राह्मणके घरमें उसका ब्याह क्यों करूँगी। और नाराज ही क्यों हूँगा। कृष्ण-कहती क्या हो ! तुम तो ब्राह्मणकी लड़की हो। अानन्द० -ब्राह्मएकी लड़की हूं तो क्या हुअा ! ब्राह्मणके आचारका पालन करना तो मैंने छोड़ ही दिया है। महिमके न्याहके अवसर पर भाई विरादरी और नातेदार लोगों ने मेरी क्रिस्तानी चाल बता कर काम विगाड़ना चाहा था, इसीसे अपनी खुशीसे मैं अलग हो गई, कुछ नही कहा । दुनिया भर के लोग मुझे क्रिस्तान बताते है, और भी न जाने कितनी कौन कौन सी बाते कहते है । मैं उनकी सब बातें माने लेती हूँ। मेरा कहना यह है कि क्रिस्तान क्या मनुष्य नहीं है ! तुम हिन्दू ही अगर इतनी ऊँची जातिके हो, और भगवान् के इतने अादरकी चीज हो, तो फिर --