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गोरा

गोरा { và के विषय में उन सबोंमें खूब उत्तेजना-पूर्ण आलोचना होने लगी । अधि- कांश लोग एकमत से बोले- इस घटना में आश्चर्य की कोई बात नहीं। कारण यह कि विनय के व्यवहार में बराबर एक दुबिधा और दुर्बलता का लक्षण दिखाई देता आया है। वास्तवमें हमारे दलमें विनयने कभी मनसा बाचा कर्मणा आत्म-समर्पण नहीं किया । बहुतोंने कहा - 'विनय प्रारम्भ से ही अपनेको किसी तरह गोरा के बरावर धर्मनिष्ठ बनानेकी चेष्टा करता था और यह बात हमें न सुहाती थी। और लोग जहाँ भक्तिका सङ्कोच रहने के कारण गोरासे यथोचित दूर रहते थे यहाँ विनय जबर्दस्ती उससे ऐसा लिपटा रहता मानों वह सर्वसाधारणले भिन्न है और गोराशा समकक्ष है; गोरा विनयको चाहता था इसलिए सब लोग उसकी इस सद्धों को सह लेते थे-- इस प्रकारके बेरोक टोक अहङ्कारका यही परिणाम हुआ करता है। उन लोगोंने कहा- हम लोग विनयके सदृश विद्वान् नहीं हैं, हम लोगोंमें अत्याधिक बुद्धि भी नहीं है, किन्तु भैया हम लोग एक आदर्श को मानकर चलते हैं । प्राचार्यने जो पथ दिखा दिया है उसे छोड़ नहीं सकते। हम लोगोंके जो मन में है वह मैं हमें है। हम आज कुछ करें और कल कुछ, वह हम लोगोंसे नहीं हो सकता। इससे भले ही हम लोगोंको कोई मूर्ख कहे,, निबोध कहे, चाहे जो कहे । गोराने इन बातोंमें कुछ योग न दिया । वह चुपचाप शान्त बैठा रहा। जव सब लोग एक-एक कर चले गये, तब गोराने देखा कि विनय उसके कमरेमें न आकर जीनेके ऊपर जा रहा है। इससे गोराने मट कोठे से निकल उसे पुकारा-विनय । विनय जीनेसे उतरकर गोराके कोठेमें आया । गोराने कहा-विनय बाबू ! मैं नहीं जानता कि मैंने तुम्हारे साथ, बिना जाने, क्या अन्याय किया है जो तुमने मुझे एकाएक इस तरह परित्याग कर दिया है। आज गोराके साथ कुछ विवाद अवश्व होगा, यह बात बिनय पहले ही से सोचकर दिलको मजबूत करके ही आया. था। जब