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गोरा

गोरा किया। कितने ही ताबीज गंडे मंत्र मानता करके थक गई। एक दिन सपने में देखा जैसे एक डलिया भर बेलेके फूल लेकर ठाकुरजी की पूजा करने बैठी हूँ--फिर देखा तो डलिया में फूल नहीं हैं, फूलोंकी जगह फूल सा गोरा एक छोटा सा लड़का था। श्राहा, वह क्या देखा था, क्या बताऊँ-मेरी दोनों आँखोंसे आनन्दके आँसू बहने लगे। बस चटपट उस लड़के को गोदमें उठा लेनेका इरादा किया कि आँखें खुल गई। उसके बाद दस दिन भी नहीं बीतने पाये कि गोराके मैंने पाया। वह तो मेरे ठाकुरजी का दान है । वह क्या और किसीका है कि उसे किसीको फेर देती ! दूसरे जन्ममें उसे गर्भ धारण करके शायद बहुत कष्ट पाया था, इसीसे इस जन्ममें वह मुझे माँ कहने आया है। तुम्हीं सोच कर देखो वह-कहाँ से किस तरह आया था ? उन दिनों चारों ओर मार काट खून खरावी मची हुई थी। हम लोग अपने ही प्राणोंके लिए भयसे अधमरे हो रहे थे कि एक दिन आधी रातको एक गर्भवती मेम आकर हमारे घरमें छिप रही। तुम तो मारे भयके उसे घरमें ही रखना न चाहते थे मैंने तुमसे छिपाकर उस बेचारीको एक एकान्त कोठरी में रख दिया । उसी रातको उसके लड़का पैदा हुआ और वह मर भी गई। उस वे माँ बाप के लड़केको अगर मैं न पालती तो क्या वह जिन्दा रह सकता ! तुम्हारा क्या ! तुमने तो उसे पादरीके हाथमें सौंप देना चाहा था। क्यों पादरीको क्यों देने जाँय ! पादरी क्या उसका मा-बाप है, या पादरीने उसके प्राण- बनाए है ? इस तरह जो मैंने लड़के को पाया, तो क्या वह गर्भमें रखकर पानेसे कम हैं ! तुम चाहे जो कहो इस लड़केको जिन्होंने मुझे दिया है, वही खुद अगर न लेलें तो मैं अपने प्राण रहते यह लड़का और किसी को नहीं लेने दूंगी। कृष्ण --सो तो जानता हूँ। तुम अपने गोराको लेकर रहो । मैंने तो उसमें कभी कोई रुकावट नहीं डाली। समाज में अपना लड़का कहकर उसका परिचय देने पर जनेऊ किए बिना बात नहीं बनती थी, इसीसे जनेऊ करना ही पड़ा---उसके लिए तो लाचारी थी । अब केवल दो बातें ---