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गोरा

गोरा डाल दिया। उन दोनोंके हृदय मिल गये हैं और उनके दोनों जीवनों की धाराएँ गंगा और यमुना की तरह एक पुण्य तीर्थ में मिल कर एक होने के लिने परस्पर निकट हो आई है-इस बारे में कुछ भी किसी ने कोई अालोचना न करके इस बात को बिनीत गम्भीर भावसे चुपचाप अकु- रित चित्तसे मान लिया। समाजने उन दोनो जनोंको बुलाया नहीं किसी मतने उन दोनों जनों को मिलाया नहीं, उनका यह बन्धन कोई कृत्रिम बन्धन नहीं है इस बात को स्मरण करके उन्होंने अपने मिलनको ऐसे एक धर्मका मिलन अनुभव किया, जो धर्म अत्यन्त बृहत उदार भावसे सरल है, जो किसी छोटी बात के लिये भगड़ा नहीं करता जिसमें कोई पंचायत का परिडत बाधा नहीं दे सकता । ललिताका मुख और आँखें उज्ज्वल हो उठी। उसने कहा-आप मुककर अपनेको हीन बना कर मुझे ग्रहण करने अावे, यह अगौरख मुझने सहा न जायगा ! आप जिस जगह है, वहीं अविचलित बने रहें, यही मैं चाहती हूँ ! विनयने कहा-अापकी भी जहाँ प्रतिष्ठा, है वहीं स्थिर रहें-आपको कुछ भी हिलना न होगा। प्रीति यदि प्रभेदको स्वीकार नहीं कर सकती, तो फिर जगत में किसी तरहका प्रभेद क्यों है ? दोनोंने प्रायः बीस मिनट तक जो बात चीत की, उसका सराँश बस इतना हो सकता है, जो कि ऊपर कहा गया है। वे इस बात को भूल गये कि हम हिन्दू हैं, या बाझ ! उनके मन के भीतर यही बात स्थिर दीपशिखा मी तरह जलने लगी कि वे दो मानवश्रात्मा हैं। - का नं० २६