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४०० ]
गोरा

४०० ] गोरा रुकावट होगी ? बेटी, तुमने मेरी जान बचा ली, मुझे विनयके लिये वड़ी चिन्ता हो रही थी। मुझे मालूम है कि उसने अपना मन और सभी कुछ तुम लोगोंको दे दिया है । तुम लोगोंके साथ सम्बन्धमें यदि उसके कहीं पर कुछ आघात लगेगा तो, उसे वह तो किसी तरह सह नहीं सकेगा। इसीसे उसे इस काममें बाधा देने से मेरे मन में कैसी व्यथा हो रही थी, सो वह अन्तर्यामी ही जानते हैं । किन्तु उसका कैसा सौभाग्य है उसका ऐसा सङ्कट तुमने इतने सहज में दूर कर दिया। अच्छा एक बात तुमसे पूंछती हूँ-परेश बाबूके साथ क्या यह बात चीत कुछ हुई है ? ललिताने लज्जाको दबा कर कहा- नहीं हुई ! किन्तु मैं जानती हूं वह ये सब बातें टीक समझेंगे। अानन्द०-बह क्यों न समझेगे ! अगर वह ऐसे समझदार न होते तो ऐसी बुद्धि,ऐसा मनका जोर तुम कहाँ से पाती ? बेटी मैं विनय को बुला लाऊँ। तुमको खुद बात चीत करके उससे सब बातें तयकर लेना उचित है। इसी समय मैं एक बात और नुकसे कह लूँ बेटी । विनयको मैं उस समय से देखती जा रही हूँ,जब वह जरा सा था ! वह ऐसा लड़का है कि उसके लिये चाहे जितना दुःख तुम लोग स्वीकार कर लो,वह उस सारे दुःखको सार्थक कर देगा । यह मैं जोर देकर करती हूँ। मैंने अकसर सोचा है कि विनय को जो प्राप्त करेगी ऐसी कौन भाग्यवती होगी ! बीच बीच में अनेक बार अनेक सम्बन्ध श्राये; मगर मुझे कोई पसन्द नहीं हुअा आज देखती हूँ वह भी कम भाग्यशाली नहीं है । इतना कहकर आनन्दमयी उँगली छुत्रा कर ललिताके चिबुकका चुम्बन किया और विनय को बुला कर ले आई। कौशलसे लछमिनियाको दालान में बिठाकर वह ललिता के लिये खाने पीने पीने के प्रबन्धका बहाना करके अन्यत्र चली गई। आज अब ललिता और विनयके बीच सङ्कोचका अवकाश नहीं था। उन दोनों के जीवन में जिस एक कठिन संकट का अाविर्भाव हुआ है उसी के अहानसे उन्होंने परस्परके सम्बन्धको सहज और बड़ा करके देखा। आज उनके बीच में किसी प्रवेश के भावने आकर रंगीन पर्दा नहीं