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गोरा

गोरा [३७३ वगैरह सब कुछ भूल गया हूं। हरिमो०-परेश बाबूने भी तो लिखा पढ़ा है--वह लो अपने धर्म की सवेर-शान कुछ पूजा-उपासना अवश्य करते हैं । विनय...-मौसी वह जो कुछ करने हैं, सो तो केवल मन्त्र रट कर नहीं किया जा सकता । उनके समान अगर कभी हो सकूँगा, तो उनकी तरह उनकी राह पर चलूगा । हरिमोहिनीने कुछ तीव्र स्वरमें कहा जब तक न हो बाप-दादे हीकी तरह उन्हींकी राह पर क्यों न चले न इधर न उधर, यह क्या अच्छा है ? अादनीका एक कुछ तो धर्मका परिचय होता ही है । न रान, न गंगा; भैया रे - यह कैसा टुङ्ग है। इसी समय ललिता कमरे में प्रवेश करके विनयको देखते ही चौक उठी। हरिमोहिनीसे पछा-~-ट्रीटी कहाँ हैं ! हरिमो-राधारानी नहाने गई है। ललिताने कहा-दीदी ने मुझे बुला भेजा था । हरिमो o-तब तक बैटो न, वह अभी आती ही होगी ! ललिताकी ओर भी हरिमोहिनीका मन अनुकूल नहीं था। हरिमोहिनी इस समय नुचरिताको उसके पहलेके सारे घिरावसे मुक्त करके संपूर्ण रूपसे अपनी मुट्ठीमें, अपने श्राधीन कर लेना चाहती है । परेश बाबूकी और लड़. कियाँ यहाँ जल्दी-जल्दी नहीं आती, एक मात्र ललिता ही जब-तक अाकर सुचरिता को लेकर बातचीत किया करती है। नगर वह मौसीको अच्छा नहीं लगता । वह अक्सर दोनोंकी बातचीतमें खलल डाल कर सुचरिता को किसी न किसी कानका नाम लेकर वहाँ से उटा ले जाने की चेष्टा करती है। या यह कहकर खेद प्रगट करती है कि आज कल सुचरिता पहलेकी तरह मन लगा कर पढ़ने लिखने नहीं पाती। नगर उधर सुचरिता जब पढ़ने लिखने में ध्यान देती है, तब वह कहनेसे भी बाज नहीं आती कि औरतोंके लिये अधिक पढ़ना लिखना अनावश्यक और अनिष्टकर है। असल बात यह है कि वह जिस तरह अनन्य भावसे