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गोरा

गोरा [ ३६१ वरदासुन्दरी---यह पहले ही ठीक हो जाना चाहिए। विनयको यहीं बुलाओ न। ऊपर आने पर विनयसे वरदासुन्दरीने कहा-तो दीक्षाका दिन निश्चित हो जाय ! विनय ने कहा-दीक्षाको क्या आवश्यकता है ? वरदासुन्दरी आवश्यकता नहीं है ? यह क्या कहते हो ? दीक्षा ग्रहण किये बिना ब्राह्म समाजमें तुम्हारा ब्याह कैसे होगा? विनय कुछ न बाला, सिर नीचा करके बैठा रहा । विनय हमारे घर में विवाह करने को राजी हुअा है, यह सुनकर परेश वावूने समझ लिया था कि वह दीक्षा ग्रहण करके ही ब्राह्म-समाज में प्रवेश करेगा। विनय ने कहा—ब्राह्म-समाजके धार्मिक मत पर तो मेरी श्रद्धा हैं और अब तक मेरा व्यवहार भी उसके विरुद्ध नहीं हुआ है। तो फिर विशेष भाव से दीक्षा लेने की जरूरत क्या ? वरदासुन्दरीने कहा~यदि मत मिलता है तो दीक्षा लेने में ही क्या क्षति है! विनयने कहा-मैं एकदम हिन्दू समाजको छोड़ दूँ, यह मुझसे न हो सकेगा। वरदासुन्दरी ने कहा- तो इस बातकी अलोचना करना ही आपके लिये अनुचित हुआ है। क्या आप हम लोगोंका उपकार करने ही के लिए दया करके, नेरा कन्या के साथ व्याह करनेको राजी हुए हैं ? विनय को इस बातकी बड़ी चोट लगी। उसने देखा, उसका प्रत्ताव सचमुच इन लोगोंके लिए अपमानजनक हो उठा है। शिष्ठ विवाह (सिविल मैरिज ) का आईन पास हुए प्रायः एक वर्ष हुआ था। उस समय गोरा और विनयने समाचार पत्रोंमें इस कानूनके विरुद्ध तीव्र समालोचना की थी। आज उस शिष्ट (सिविल) विवाहकों स्वीकार कर विनय अपने को हिन्दू न माने, यह बड़ी मुशकिल बात है। विनय हिन्दू समाज में रहकर ललितासे व्याह करे, यह बात परेशबाबू