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[ ४९ ] आनन्दमयीके घरसे रोज सवेरे विनय एक बार अपने घर पाता था । अाज सवेरे आने पर उसे एक चिट्ठी मिली। चिट्ठी में किसी का नाम नहीं था। चिट्ठी में इस बारे में लम्बा चौड़ा उपदेश था कि ललिता के साथ ब्याह करने से वह विनय के लिये किसी तरह 'सुखदायक नहीं हो सकता, और ललिताके लिए भी वह अमङ्गल ही का कारण होगा । सब के अन्त में यह लिखा था कि इतने पर भी अगर विनय ललिता को न्याने से निवृत्ति न हो, तो यह वात वह सोचकर देखे कि ललिता का फेफड़ा कमजोर है--डाक्टर लोग उसके क्षयरोग की आशंका करते हैं । विनय इस तरहकी गुमनाम चिट्ठी पाकर हतबुद्धि सा हो गया। विनयने कमी खयाल भी नहीं किया कि झूठ मूठ भी ऐसी बात की सृष्टि हो सकती है। कारण यह तो किसीसे छिपा नहीं है। समाजकी बाधाके कारण ललिताके साथ विनयका विवाह किसी तरह नहीं हो सकता। किन्तु ऐसी चिट्ठी जब उसके हाथ में आकर पहुंची है, तब समाजके बीच इस सम्बन्धमे निस्सन्देह बहुत अधिक आलोचना हो गई है। इससे समाजके आदमियोंके निकट ललिता कितनी और कैसी अपमानित हो रही है, यह सोचकर विनयका मन चंचल और दुखी हो उठा। विनय इस तरह चंचल होकर जिस समय वरामदेमें टहल रहा था, उसी सनय देखा, हारान बाबू रास्ते चले आ रहे हैं । उसी समय उसकी समझमें आगया कि वह उसीके पास आ रहे हैं । और, उस गुम-. नाम पत्रके पीछे एक बहुत बड़ी हलचल मौजूद है, यह मी उसने निश्चय जाना। और दिनकी तरह विनयने अपनी स्वभाव सिद्ध प्रगल्पना नहीं प्रकट