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[ ४७] चार दिन बाद चिट्ठी हाथमें लिये हारान बाबू वरदासुन्दरी के निकट आ कर उपस्थित हुए। आज कल परेश वाबूकी अाशा उन्होंने बिलकुल ही छोड़ दी है। हारान बाबूने वह चिट्ठी वरदासुन्दरीके हाथमें देकर कहा-मैंने पहले ही से आप लोगोंको सावधान कर देने की बहुत चेष्टाकी है। उनके लिए आप लोगोंका अप्रिय भी हो गया हूँ। इस समय चिट्ठीसे ही आप समझ सकेंगी कि मीतर-भीतर मामला कहाँ तक आगे बढ़ गया है। शैलबालाको ललिताने जो चिट्ठी लिखी थी वही वह चिट्टी थी। वरदासुन्दरीने उसे पढ़ा। फिर कहने लगी- -आप ही बताइए, मैं किस तरह जान सकती हूँ ! कभी जो मैं मनमें भी नहीं ला सकी, वहीं हो रहा है । मगर मैं कहे रखती हूँ आप इसके लिये मुझको दोष न दीजियेगा सुचरिताको तो आप सब लोगोंने ही मिलकर, बहुत भली-बहुत भली, कहकर एकदम सिर पर चढ़ा लिया था; ब्राझ समाजमें ऐसी और कोई भी लड़की नहीं है, कहकर आप ही लोगोंने उसका दिमाम आसमान पर चढ़न दिया है। अब अपनी उस अादर्श ब्राझ कुमारी की कीर्ति संभालिए। विनय और गोराको तो वही इस घरमें लाई है। मैं फिर भी विनयको बहुत कुछ सुधार कर अपनी ही राह पर खींच कर लिये आ रही थी; मगर उसके बाद उसने न जाने कहाँ से अपनी एक मौसीको लाकर हमारे ही घरमें मूर्ति पूजा शुरू कर दी, और विनयको भी ऐसा दिगाह दिया कि अब वह मुझे देखते ही भाग खड़ा होता है । इस समय को कुछ हो रहा है, उसकी बड़में आप लोगोंकी वह सुचरिता ही है। मैं पराबर पहले ही से जानती थी कि वह लड़की कैसी लड़की हैं, लेकिन कमी कोई आधी ३४० 1