गोरा [ ३२५ वास्तव में वे नीच हैं । वे भले ही उत्पात मचावें मैं उनसे हार माननेवाली. नहीं। कभी नहीं, किसी तरह नहीं। इसके लिये जो उनके जी मे आवे यह कहत ही ललिता ने जोर से जमीन पर पैर पटका । सुचरिता कुछ उत्तर देकर धीरे-धीरे ललिता के हाथ पर हाथ फेरने लगी कुछ देर पीछे बोली ललिता वहन, एक बार वावृजी से पूछ देखो व क्या कहते हैं ? ललिता ने खड़ी होकर कहा-मैं अभी उनके पास जाती हूँ : ललिताने अपने घरके फाटकके पास पाकर देखा, विनय सिर झुकावे वाहर जा रहा है । ललिताको आने देख वह कुछ देर तक खड़ा हो रहा ! ललिताके साथ में दो एक बाते कर या नहीं इस बातको वह मन ही मन सोचने लगा। किन्तु उसने अपने को रोक ललिता नहकी ओर देखे बिना ही उसे नमस्कार किया और सिर झुकाये ही कट चल दिया ! ललिताके हृदयमें मानों पागकी तमी की चुद गई ! वह बड़ी तोत्र गतिमे फाटक पार करके एकाएक अपनी माँ के काम गई। उसकी मां उस सन्दय टेबलक अगर एक लन्त्री जनावर बही बोलकर बड़े ध्यान में कोई हिसात्र करने को ना कर रही थी। ललिता एक कुनी खींचकर टेक्लिक पास बैट गहे तो भी बरदासुन्दरीने सिर न उठाया । ललिताने कहा-माँ ! वरदासुन्दरी - "बेटी बेटी, मैं यही-टेखो बड़ा दैरने ..." यह कह कर वह वही के ऊपर और भी झुक बड़ी : ललिता ने कहा-मैं तुमको विशेष कष्ट न दूंगी सिर्फ एक बात जानना चाहती हूँ | विनय वाबू पाये थे ! वरदासुन्दरी वहीकी और नजर किये ही बोली हाँ। ललिता-उनके साथ तुम्हारी क्या बात-चीत हुई ! बरदासुंदरी- बहुत कुछ बातें हुई। ललिता - मेरे सम्बन्धमें कुछ बात हुई है ? वरदासुन्दरीने कहा-हाँ बेटी ! दुई थो ! जब देखा कि बात दिनों
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