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गोरा

३०८] गोरा परेश बाबूने हरिमोहिनीसे कहा-मैं आपके घरसे आपकी वस्तुओं को रख पाता हूँ। पोश बाबूक चले जाने पर विनयने अचम्भेके साथ कहा-तुम्हारे घर की बात मैं नहीं जानता। हरिमोहिनीने कहा- मै भी तो नहीं जानती, केवल परंश बाब जानते हैं । वह घर हमारी राधा रानीका है। बिनयने यह सुनकर कहा-मैंने सोचा था कि विनय संसारमें किसी के काम अवेगा, पर अब यह अाशा मी जाती रही । अभी तक तो मुझसे माँकी कुछ सेवा बन नहीं पड़ी है, जो काम मुझे करना चाहिये उसे वे आप कर रहा है । मौसीका भी कुछ काम न करके मैं उसीसे अपना काम कर लूँगा। मेरे नसीबमें केवल लना ही लिखा है, देना नहीं । कुछ देर बाद ललिता और सुचरिताके साथ अानन्दमयी श्रा पहुँची । हरिमोहिनीने कुछ आगे बढ़कर कहा- "भगवान् जब दया करते हैं तब किसी बातकी कमी नहीं रहती । वहन, आज तुम भी मिल गई।" यह कहकर उसे हाथ पकड़कर ले आई और चटाईके ऊपर बिठाया। हरिमोहिनीने कहा-~-बहन, तुम्हारी चर्चा छोड़कर विनयके मुँहमें और कोई बात ही नहीं है। आनन्दमयीने हँसकर कहा -बचपनसे ही उसको यह रोग है वह जिस बातको पकड़ता है उसे शीत्र नहीं छोड़ता। मौसीका नाम लेना भी अब शीघ्र ही शुरू होगा। विनयने कहा- हाँ, यह होगा । यह मैं पहले ही कह रखता हूँ। ललिताकी ओर देखकर आनन्दमयी मुसकुराती हुई चोली—जो घस्नु विनयके पास नहीं है उसका संग्रह करना वह जानता है, और संग्रह करके उसका आदर करना भी जानता है। तुम लोगोंको वह किस दृष्टिसे देख रहा है, यह भी मैं जानती हूँ। जिस बातको वह कभी 1 "