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गोरा

गोरा [ २६६ बड़ा सुन्दर था । जैसा रङ्ग था, वैसा ही नुडौल चेहरा : उसके कुछ धन सम्पत्ति भी थी। जैसा मेरा समय पहले अनादर और कष्ट में बाता था, बैन ही भाग्य फूटने के पूर्व विधाताने मुझे कुछ दिन सुख भी दिया था ! अन्त में मेरे स्वामी मुझे बड़े यादर और श्रद्धाकी दृष्टिसे देखने लगे। मुझसे विना सलाह लिए कोई काम न करते थे। इतना बड़ा सौभाग्य मेरा विधातासे न देखा गया, हैजेकी बीमारी में पड़कर चार रोज के भीतर मेरा लड़का और मेरे पिता दोनों जाते रहे। धौरे धीरे मैं अपने जमाई का परिचय पाने लगी । नुन्दर फूलके भीतर जो काला साँप छिपा था, उसे कोई कैले जान सकता था ! बुरे लोगों की सङ्गति में पड़कर वह मद्य-पान करने लग गया, पर मेरी लड़कीने भी यह मुझसे किसी दिन न कहा । जमाई जव-तक प्राकर, अपने धरकी अनेक आवश्यकताएँ दिखाकर, मुझसे रूपया माँग ले जाता था। मुझे तो किसीके लिये रुपया जमा करनेका कोई प्रयोजन न था इनीसे जब वह विनती करके तुझसे कुछ माँगता तो मुझे अच्छा ही लगता था। बीच-बीच में मेरी लड़की मुझे रोकती थी और फटकार कर कहती थी कि नुन इस तरह इन्हें रुपया देकर उनके स्वभावको बिगाड़ती हो । रुपया हाथ आने से उसे कहाँ कैसे उड़ा डालते हैं, इसका पता नहीं ! न्यया पाकर जो इनके जी में आता है, कर गुजरते है : मैं समझती थी कि उसका पति नुझसे जो इस प्रकार रुपया लेता है, उसने अपने श्वशुर- कुलकी अप्रतिष्टाके भय से शायद मनोरमा मुझे त्पया देनेमे रोकती है। तब मेरी ऐसी बुद्धि हुई कि मैं अपनी बेटीसे छिपाकर जमाईको रुश्या देने लगी। मनोरमाको जब इसका पता लगा तब उसने एक दिन मेरे पास आकर और रो रोकर अपने त्वामीके दुराचार की सब बातें कह सुनाई । मैंने अपना सिर पीट डाला। दुःखकी वान और क्या कहूँ ? मेरे एक देवरने ही उसे मद्य-पान की आदत लगाकर उसके स्वनाव को विगाड़ दिया था ।