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सुचरिताकी मौसी हरिमोहनीके कारण परेश बाबूके घर में बड़ी अशान्ति उत्पन्न हुई । इस अशान्तिका वर्णन करने के पहले हरिमोहिनीने सुचरिताको जो अपना परिचय दिया था वह यहाँ संक्षेप में लिखा जाता है। उन्होंने कहा -"मैं तुम्हारी माँ में दो साल बड़ी थी। पिता के मन में हम दोनों बहनोंके आदर की मीमा न थी। आदर क्यों न होता, उम समय अपने वापके घरमें केवल हमी दोनों वलिकाओं ने जन्म लिया था। घर में और कोई लड़का बच्चा न था। चचा इन दोनों वहनाक: बराबर गोदमें लिये रहते थे। धरती पर पैर रखने का हमें अवकाश नहीं मिलता था। मेरी उमर जब बाट वर्ष की हुई, तब ऋन्मनगरके विग्ल्यात चीन घरानेमें मेरा विवाह हुनः : बे मे ही कुजीन थे, वैसे ही धनी नी थे ! जिन्नु मेंगे भागने मुख नलिवा था व्याह के समय लेन-देन की जान पर मेरे सनर के साथ विनानी का झगड़ा हो गया ! मेरे पिताके उम अपराधसे मेरे ससुर बहुन दिन नक बिगड़े रहे । मेरी समुपज़क नभी लोग कहने लगे-इम अपने लड़केका दूसरा विवाह करा इंगे तब देवगे कि उस लड़की की क्या दशा होती है। मेरी दुर्दशा देखकर है बताने प्रतिज्ञा की थी, अब कभी धनवान्के पर लड़कीका ब्याह न करगा। इसी तुम्हारी माँ को गरीब के ही घरमें ब्याह दिया था। मेरे ससुर के परिवार में बहुत लोग एक साथ रहते थे ! नो इस वर्ष की उम्र में ही मुझे बहुत लोगांकी रसोई बनाने का मार दिया गया । ५०-६० व्यक्ति नित्य भोजन करते थे। सत्रको खिला मिलाकर तब मैं किसी दिन सिर्फ रूखा-सूखा भात, और किसी दिन दाल-भात खाकर ही २६७