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२६२ ]
गोरा

बाबू की २६२] गोरा प्रमाणको उससे भी अधिक दृढ़ता करने के लिए वह उसी समय विनयके घर पर दौड़ा गया । लौटकर उसने कहा-वह तो घर पर है ही नहीं, इसीसे नहीं पाये। ललिताने पूछा--कई दिनसे घर क्यों नहीं पाये ? सतीशने कहा-कई दिनसे घर पर नहीं है। तब ललिताने सुचरिताके पास जाकर कहा-दीदी, गौर माँ के पास हम लोगोंको एक बार जरूर जाना चाहिए । सुचरिता -- उन लोगोंसे हमारी जान-पहचान जो नहीं है ? ललिता--वाह, गोरा बाबूके वाप तो हमारे बाबूजी के लड़कपनके मित्र है। सुचरिताको याद आ गया । उसने कहा- हाँ यह तो जरूर है । नुचरिता भी अत्यन्त उत्साहित हो उठी। बोली-बहिन ललिता, तुम जानो, जाकर बाबूजीसे चलनेको कहो । ललिता-ना, मुझ से न कहा जा सकेगा; तुम जाकर कहो। अन्तको सुचरिता ही परेश बाबूके पास गई। उनके आगे यह प्रसंग उठाते ही वह बोले- ठीक है, अब तक हमें हो आना चाहिए था। भोजन के बाद जानेकी बात जब पक्की हो गई. लब ललिता का मन एकाएक विमुख हो उठा । तब फिर न जाने कहाँ से अभिनान और संशव श्राकर उसे विपरीतकी अोर ग्वींचने लगा। उसने हाकर मुचरिताम कहा--दीदी तुम बाबूजी के साथ जायो । मैं न जाऊँगी। सुचरिताने कहा -यह कैसे हो सकता है ! नृ न भावगी तो मैं अकेले नहीं जा सकँगी । मेरी वहन, मेरी रानी, चल गड़बड़ न कर । अनेक अनुनय-विनयके बाद ललिता गई। किन्तु विनय के निकट वह जो परास्त होगई, विनय अनायासही उन लोगोंके घर न आकर मी रह सका और वह अाज विनयको देखने दौड़ी जा रही है इस पराभवके अप- मानसे उसे भारी क्रोध होने लगा। विनयको देख पानेकी अाशा ही आनन्दमयीके घर जाने के लिये उसके मनमें एक अाग्रह का माव पैंदा -