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गोरा

। गोरा [२३५ उसके पीछे बिनयको देख वह झट उठ खड़ी हुई और बँघट बढ़ाकर भीतर जाना चाहा । सतीश झट दौड़कर उसने लिपट गया और बोला, मौसी, तुम क्यों भागती हो ? यह मेरी ललिता बहन है, और ये विनय बाबू हैं । बड़ी बहन कल आवेगी। विनय बाबूका यह संक्षिप्त परिचय ही काफी था। उसके पहले ही विनय बाबू के सम्बन्धमें पूर्ण लपसे अलोचना हो चुकी है, इसमें सन्देह नहीं । सतीश किसे मौसी कह रहा है, यह न बाननेके कारण ललिता चुपचाप खड़ी रही। विनयने इस अधेड़ स्त्री के पैर छूकर उसे प्रणाम किया । ललिताने मी विनय का अनुसरण किया। उस स्त्रीने झट भीतरसे एक चटाई लाकर बिछा दी और कहा- बैठो बाबू, वेटी तुम बैठो। विनय और ललिताके बैठने पर वह भी अपने प्रासन पर बैटी और सतीश उसके बदनसे सटकर बैठा। उसने सतीशको दाहने हाथने भरकर कहा- नुने अाप नहीं जानते, मैं सतीशकी नौसी हूँ ! सतीशकी नाँ मेरी सगी बहन थी। इस सामान्य परिचयक भीतर कोई ऐसी विशेष बात न थीं किन्तु उस स्त्रीके चेहरे और गलेकी अावाजमें ऐसा एक विलय भाव था जिससे उसके जीवनका; गम्भीर शोक से भरा हुआ, पवित्र अानास प्रकाशित हो पड़ा । मैं सतीशकी मौसी हूँ यह कहकर जब उसने सतीशको छातीसे लगाया, तब उस स्त्रीका जीवन वृतान्त न जानने पर भी विनयका मन दयासे पसीज गया। वह लेह मरे खरसे बोल उटा -आप अकेले सतीश की मौसी होकर रहेंगी, तो कैसे होगा? अगर आप सतीशके बराबर मुझे न समझेगी तो सतीशके साथ मेरा झगड़ा होगा । एक तो वह मुझे विनय बाबू कहकर पुकारता है, भाई नहीं कहता, तिस पर नी अब वह मुझे आपसे मौसीका नाता न जोड़ने देगा, तो कैसे बनेगा। किसीके मनको वशमें कर लेना विनयके बायें हाथका खेल था ।