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गोरा

गोरा २२५ औरोके कार ही नहीं है, वह अपने ऊपर भी जोर देते हैं। यह सच्चा जोर है। ऐसा आदमी और मैंने नहीं देखा । इसी तरह ललिता कहने लगी। यह बात नहीं थी कि वह केवल गोरके सम्बन्यमें पश्चात्तापका वोध करनेके कारण ही ये सब वान कह रहा था; असलमें एक धुनमें आकर उसने जो काम कर डाला था, उसका संकाच मनके भीतरसे बराबर सिर उठानेका उपक्रम कर रहा था, कान शायद अच्छा नहीं हुया ? इस दुविधाके जोर करनेके लक्षण देखे जाते थे। विनयके सामने स्टीमरमें इस तरह अकेले बैंट रहना इतनी बड़ी कुन्टाका विश्य है इसका ख्याल पहले वह नहीं कर सकी थी, किन्नु लम्ना प्रकट होते ही यह घटना अत्यन्त लज्जाका नानला हो उठेगा, इसी लिए वह पाएमएसे कहने लगी। विनयको बोलना मी भारू हो रहा था। एक ओर गोराका कष्ट और अपमान था, दूसरी ओर यहां मैजिस्ट्रेट के घर आमोद-प्रमोद में सम्मिलित होने के लिए आनेकी लम्बा थी, उस पर तुर्रा यह कि ललिताके इस दुस्साहससे उनले सन्बन्ध में विनय पर संकट आ पड़ा ! इन्हीं याताने मिलकर विनोगा सा बना दिया था। पहले होता, तो ललिताके इस दुत्साहसते विनयके नन में तिरस्कार का नाव उत्पन्न होता, किन्तु पात्र वह किसी तरह नहीं हुआ ! यहाँ तक कि उसके ननमें जो विस्मय उदय हुआ था, उसके साथ श्रद्धा मिली हुई थी। इसमें एक और आनन्द यह था कि उनके सारे दलके भीतर गोरा अपमानके प्रतिकारको चेष्टा केवल विनय और ललिताने ही की है । इसके लिए विनयको तो विशेष कुछ दुःख उठाना होगा, किन्नु ललिताको अपने कर्म के फलवल्प बहुता दिन तक असीन पीड़ा भोग करनी होगी। इसलिये इसी ललिता को विनय बरावर, गोराके विरुद्ध हो जानता था । पर जितना ही सोचने लगा उतना ही ललिता के इस परिणाम विचार विहान सहास और अन्यायके प्रति एकान्त घृणासे उसके प्रति विनयके मन में भक्ति उत्पन्न होने लगी। किस तरह क्या कहकर फा० नं०१५